मेरी आखिरी कहानी भी तुम्ही हो HARI KISHOR TIWARI
मेरी आखिरी कहानी भी तुम्ही हो
HARI KISHOR TIWARIजो न होती थी वो बात कभी मुझमें
आज वो मेरा अहसास मन में आने लगा,
आप दोस्ती की बात क्या निभायी मुझसे,
मेरे मन के नीम के पौधों में आम लगने लगा।
किस शब्दों में करुँ मैं आपका धन्य-धन्य सत्कार,
ये आपकी चाहत है या है कोई अनमोल उपहार,
मैंने एक लफ्ज़ में माँगा आपको एक दोस्त की तरह,
आपने दी स्वीकृति यूँ कि मुझे मिल गया सारा संसार।
मुझे याद आता है
मेरे आँसुओं को था जिसने थामा,
मुझसे ज्यादा जो मुझको पहचाना,
जब मैं कभी उदास हुआ करता था तो
पास-पास रहना और मुझे हँसाना।
भोली सी सूरत चंचल सी आँखें,
शोख अदाओं से मुझको रिझाना,
बीच-बीच में कुछ ऐसी वैसी बातें करना कि
बरबस मेरे उदास चेहरे पर हँसी का आना।
गिन-गिन कर तारे सब गिन जाऊँ मैं,
पर उसकी यादों को भुला न पाऊँ मैं !
ऐसी थी हमसफ़र मेरी वो चाहत कभी,
आज उसके साए में तुम्हारी शक्ल पाऊँ मैं।
सुबह का आलम हो या शाम का हो समां,
बस तू ही तू हो और तुम्हारी हो मेरी अरमां,
आरज़ू भी तुम ही हो ख्वाहिश भी तुम्ही हो,
मेरी जिंदगी की आखिरी हो तुम्ही इल्तज़ा।
मेरे दोस्त मेरे हमसफ़र मेरे खुदा मेरी जिंदगी,
मेरी आखिरी कहानी भी तुम्ही हो हाँ तुम्ही हो तुम और तुम्ही हो !
हाँ मेरी प्यारी सी दोस्त, मेरी जिंदगी मेरी इल्तज़ा
मेरी ख्वाब वो, अब तुम हो तुम्ही हो !!
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ज़िन्दगी भी कितनी अजीबोगरीब है, कभी ये रुलाती है, कभी ये हँसाती है, कभी अपनों से दूर बहुत दूर ले जाती है कभी किसी मोड़ में अचानक किसी अजनबी को बहुत अज़ीज़ बना जाती है। ये ज़िन्दगी बड़ी अजीब होती है कभी हार तो कभी जीत होती है तमन्ना रखो समंदर की गहराई को छूने की किनारों पे तो बस ज़िन्दगी की शुरुआत होती है !!