न जाने किनका ख्याल आ गया सलिल सरोज
न जाने किनका ख्याल आ गया
सलिल सरोजन जाने किनका ख्याल आ गया,
रूखे-रौशन पे जमाल* आ गया।
जो झटक दिया इन जुल्फों को,
ज़माने भर का सवाल आ गया।
मैं मदहोश न हो जाती क्यों-कर,
खुशबू बिखेरता रूमाल आ गया।
मैं मिट जाऊँगी अपने दिलबर पे,
बदन तोड़ता जालिम साल आ गया।
मेरे हर अंग पे है नाम उसकी का,
यूँ ही नहीं हुस्न में कमाल आ गया।
* जमाल - सुंदरता