रोटी की जात नहीं पूछा करते सलिल सरोज
रोटी की जात नहीं पूछा करते
सलिल सरोजभूख लगे तो रोटी की जात नहीं पूछा करते,
पेट को लगेगी बुरी, ये बात नहीं पूछा करते।
ये धरती बिछौना, ये आसमाँ है शामिआना,
बेघरों से बारहाँ दिन-रात नहीं पूछा करते।
मालूम है कि एक भी पूरी नहीं हो पाएगी,
बेटियों से उनके जज्बात नहीं पूछा करते।
क्यों बना है बेकसी का ये आलम कौम में,
सरकार से ऐसे सवालात नहीं पूछा करते।
जिन उँगलियों में कालिख लगा दी गई हो,
उनसे फिर कलम-दवात नहीं पूछा करते।
जो दोस्त चला गया कमाने, गाँव छोड़ के,
कब होगी अब मुलाक़ात नहीं पूछा करते।
वो टूट जाएगा बताते बताते हाल अपना,
ऐसे इश्क़ की शुरुआत नहीं पूछा करते।