मैं कुंटल भर खाऊँगा  SHRIYANSH SRIVASTAVA

मैं कुंटल भर खाऊँगा

SHRIYANSH SRIVASTAVA

मैं कुंटल भर खाऊँगा,
ताज़ा, लज़ीज, लवाबदार,
चटकारा लेकर दबाऊँगा,
मैं कुंटल भर खाऊँगा।
 

नहीं भरूँगा अपना ढींड़ा,
तो तोंद कैसे सहलाऊँगा,
भर के पेट उमा-उम्म!
डकार कैसे बजाऊँगा?
बअअअअअअअअअअअअअ!!!
 

बिना खाए मैं बेड पर
लाश कैसे बन पाउँगा?
अल्पाहार चुग के,
कुत्ता, बगुला चौकन्ना
न हो जाऊँगा,
फिर रात-रात भर जग कर,
काम थोड़े कर पाऊँगा ?
मैं तो भैया ढींड़ा भरके,
मस्त नींद में अविराम
खो जाऊँगा !
 

हट मोटापा ! भग भुढ़ापा !
मैं चापते जाऊँगा !
एक दिन शरीर है जलना,
बीमारी को भी जलाऊँगा !
डॉक्टर-फाक्टर, हार्ट-फार्ट !
का मैं क्यों ठेका लिखाऊँगा,
मैं कुंटल भर खाऊँगा !
 

कोई भूखा मरे तो,
मैं क्या कर पाउँगा ?
मेरे घर में भरा पड़ा है,
भिखमंगों भुखमरों की सुध
मैं क्यों लेने जाऊँगा?
मैं अपना कुंटल भर खाऊँगा।
 

ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला-चिल्ला कर,
मैं यहीं से मंदिर वहीं बनाऊँगा,
सोशल वर्क में क्या रखा हैं,
मैंने बहुत खा लिया है भैया
अब मैं गहरी नींद सो जाऊँगा।

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