बचपन Shubham Amar Pandey
बचपन
Shubham Amar Pandeyमेरी बातों को सुनती होती
अगर ये ज़िन्दगी मेरी,
तो बचपन को जवानी में
चुपके से मैं ले आता ||१||
तो बचपन को .....
बैठता अब बच्चों के संग
सीखता मैं उनके ढंग,
उन्ही में घुल मिल जाता
पुनः मैं ज़िन्दगी पता ||२||
तो बचपन को .....
कभी कुछ देखकर हँसता
कभी कुछ देखकर रोता,
वही फिर हरकतें करता
और बच्चा मैं बन जाता ||३||
तो बचपन को .....
कभी कागज़ की कश्ती को
मैं बारिश में चलता,
जो लोरी माँ से मैं सुनता
वही सबको सुनाता ||४||
तो बचपन को .....
नया कुछ देख लेता तो
मैं थोड़ा जिद पे अड़ जाता,
ज़मी पे लोटता रहता
कि जब तक उसको न पाता ||५||
तो बचपन को .....
मेलो में मैं जब जाता
खिलोने ढेर से लाता,
इतना खुश मैं हो जाता
की सब कुछ भूल ही जाता ||६||
तो बचपन को .....
मगर जवानी का ये अनुभव
बड़ा खट्टा सा लगता है,
मासूमियत छीन लेता है
तन्हाई को बढ़ाता है ||७||
तो बचपन को .....
पिछले कुछ दिनों से जब भी
बचपन मुझे है याद आता,
खिलखिला के मैं हँस लेता
सारे ग़मों को भूल जाता ||८||
तो बचपन को .....
सोंचता हूँ जब भी मैं
बचपन की शरारत को, तो
ज़िन्दगी अब है कहाँ
स्वयं को उससे दूर पाता ||९||
तो बचपन को .....
खुदा मेरी भी सुन लेता
मुझे वरदान ये देता
उन पलों को वापस पाता
मैं बच्चा फिर से बन जाता ||१०||
तो बचपन को .....