मोहर  सलिल सरोज

मोहर

सलिल सरोज

वे जिन्होंने राम की प्रत्यंचा पर सीता को जकड़ रखा है,
वे जिन्होंने अपनी नपुंसकता पर महारानियों का जौहर कर रखा है,
वे जिन्होनें वेदों की मरघट पर ललनाओं को जला रखा है,
वे जिन्होंने अपने स्वार्थ-वेदी पर बच्चियों को बलि बना रखा है,
वे जिन्होंने अँधे होके अपनी बहनों को आजीवन सबरी कर रखा है,
वे जिन्होंने पागलपन में घर को विधवाओं का वृन्दावन कर रखा है,
वे जिन्होंने चौक-चैराहे पे लड़कियों को हवस से डस रखा है।
 

इन सबको जवाब देना होगा-
सरकार को नहीं,
कानून को भी नहीं,
समाज को तो बिल्कुल नहीं,
क्योंकि-
इससे कुछ नहीं बदलेगा।
 

खुद को जवाब देना होगा,
खुद से सवाल करना होगा,
जो तुमने जला दिया, जो तुमने मिटा दिया,
वो तुम पर कर्ज नहीं, तुमारी धरोहर थी,
तुम्हारे सभ्य होने की एक मात्र मोहर थी।

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