ज़िंदा दिखो भी सलिल सरोज
ज़िंदा दिखो भी
सलिल सरोजमन-मस्तिष्क के भीतर
एक छोटा सा रास्ता है
सभी ताम-झाम से दूर,
वहाँ वैसे जिए गए पल हैं
जहाँ तुम ज़िंदा थे,
खुद की काबिलियत पे
यूँ नहीं शर्मिन्दा थे।
जहाँ तुम थे
तुम्हारे होने के मायने थे,
कुछ सपने थे
जिन्हें पूरे होने
की जिद्द नहीं थी,
कुछ खो गया तो
पाने की सनक नहीं थी।
अभिमान, स्वाभिमान का
चक्रव्यूह भेदना न था,
पैसों की खातिर
रिश्तों को तोड़ना न था।
कभी जाओ
फिर उन
राहों पर
और चुन लाओ
कुछ वो पल
और गर ज़िंदा हो
तो
ज़िंदा दिखो भी।