यह संभव है सलिल सरोज
यह संभव है
सलिल सरोजयह संभव है कि
तुम कभी
उस रास्ते गए ही नहीं
जहाँ पैरों के निशाँ कम हैं,
जहाँ मंज़िल तलाशनी पड़ती है
और
एक वक़्त को लगता है कि
हाँफते-हाँफते
प्राण -पखेरू उड़ जाएँगे
और
सपनों के बाण
यूँ ही तरकश में
धरे रह जाएँगे।
मगर
कदम पीछे करने से पहले
तुम कुछ देर और टिक जाते,
अपनी विश्वास से न यूँ डिग जाते
तो
तुम्हें
गर रास्ता नहीं भी मिलता
तो तुम अपना रास्ता स्वयं
बना लेते,
और सफलता की लौ
जला लेते।
हमेशा राह बने -बनाए मिलते नहीं
कभी बनाने भी होते हैं,
और जीत उसकी ही होती है
जो अटल हो जाता है,
खुद के बनाए राह पर
जो विश्व -पटल हो जाता है।