पीर  Shubham Amar Pandey

पीर

Shubham Amar Pandey

पीर मेरी बरसों पुरानी पीर का एहसास उसको करना है,
जो दर्द दिया था उसने अब उसको भी सहना है।
 

शंकाओं के आगोश में आकर, दिल को मेरे तोड़ गए
नींद, चैन सब ले गए दर्द से दामन जोड़ गए।
 

कितनी रातें बीती मेरी तन्हाई में रोते-रोते,
उनको क्या मालूम होगा उनकी बीती सोते-सोते।
 

सब हँसते थे, सब गाते थे हम तो ग़म के मारे थे,
हँसी-ख़ुशी सब उनकी थी बस हम ही दर्द संभाले थे।
 

तारों में ख़ामोशी छा गयी चंदा से ही बैर हो गया
कल तक जो सिर्फ अपना था आज वही क्यूँ ग़ैर हो गया।
 

जल की धाराएँ बदल गयी अब पवन भी उल्टी चलती है
इतना विश्वास तो है मुझको कि भ्रम की बर्फ पिघलती है।

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