हम तुम DEVENDRA PRATAP VERMA
हम तुम
DEVENDRA PRATAP VERMAफिर रही है आसमा में
ख्वाबों की परियाँ जमीं की,
मैं अंधेरों से घिरा हूँ
तुम किरण हो रोशनी की।
तुमने दिखाए दृश्य वे
जिसने मुझे जीवन दिया,
आँखों में आँखें डालकर
बात की मेरी कमी की।
सोते हुए को क्या खबर कि
जागना क्या चीज है,
जागृति के अंकुरण पर
तुम परत सी हो नमी की।
पाके तुझको मैं जगत में
भूल बैठा हूँ स्वयं को,
मेरे अहम का नाश कर
तुम गुरु हो छवि सखी की।
हो क्षमा के योग्य न
तो भी क्षमा करना मुझे,
है मुझे अफसोस अपनी
की हुई हर गलती की।