वो नन्ही गुड़िया  Shubham Amar Pandey

वो नन्ही गुड़िया

Shubham Amar Pandey

अम्मा-बापू की यादें जब भी उसको आती हैं
वो बेशकीमती मोती अपने खोती है,
तब नन्हीं गुड़िया बड़ी अकेली होती है
पेड़ों के नीचे बैठ के जब वो रोती है।
 

कुछ दिन पहले तक तन्हाई से उसका नाता न था,
जीवन ऐसा भी होता है ये सब उसको पता न था,
पर कालखण्ड ने उसको पतझड़ का मतलब बतलाया है,
जीवन का अनदेखा पहलू उसको दिखलाया है।
 

कल तक जो कल की अफसर बिटिया थी
वो आज घरों में चूल्हे-चौके करती है,
कितने जालिम हैं लोग यहाँ के
हाय! इस तरह पेट वो भरती है।
 

जिस रात आसमां उसको भूखा पाता है,
व्याकुल होकर चाँद अमावास कर जाता है,
इस जहाँ में जब भी कोई बच्चा भूखा सोता है,
निश्चित ही तब खुदा भी फूट-फूट कर रोता है।

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