अराजक  DEVENDRA PRATAP VERMA

अराजक

DEVENDRA PRATAP VERMA

किसी निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाजी होगी,
ठहरो इस हादसे की और भी खबरें आती होंगी।
 

मरने और मारने वालों के अलावा भी कोई था,
कुछ भी स्पष्ट नहीं, कहना भले साफगोई था।
 

इस आग का दीदार तो रोज़ होता है,
फिर नया क्या है जो तू धीरज खोता है।
 

तुझे शौक है देखने का तो देख तमाशा,
माथे पर शिकन क्यों है, क्यों है निराशा!
 

आगे अभी और भी खबरें आएँगी,
मानवता का ह्रास कर दिल देहलाएँगी।
 

इस अराजकता को टोक सकता है,
तू जानता है, तू इसे रोक सकता है।
 

आत्म मुग्ध हो तुम्हें तो बस राज करना है,
हर सुदृढ़ व्यवस्था पर ऐतराज करना है।
 

फिर वर्तमान पर शोक का ये दिखावा क्यों,
तुम्हारे भीतर क्रोध का इतना लावा क्यों!
 

सब्र करो यह तुम्हे भी अपनाएगी,
मौत अपना किरदार ज़रूर निभाएगी।

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