यादों की ख़ुशबू DEVENDRA PRATAP VERMA
यादों की ख़ुशबू
DEVENDRA PRATAP VERMAतेरी यादों की खुशबू से
महके घर का कोना-कोना,
चाँद सितारे दीप जलाए
नींद जगाए नर्म बिछौना।
सुंदर स्वप्न सुनहरी रातें
खामोशी के किस्से गाती,
तेरी मुस्कानों की कलियाँ
मुरझाई सी नम हो जाती।
हँसने-गाने वाले दिन की
दुःख पहुँचाने वाले दिन की,
तस्वीरों के तहखाने में
तस्वीरों की न कोई गिनती।
मन घबराए विचलित होकर
सूनी कलाई छूकर रोकर,
तुझको पुकारे आ जा आ जा
दूर न जा तू मेरी होकर।
एक तू ही मुझको पहचाने
बाकी सब लगते अनजाने,
ग़म की काली रात जो बढ़ती
तुम प्रभा सी आती जगाने।
यूँ तो तुम हर पल दिल मे हो
फिर भी व्याकुल क्यों मन मेरा,
बाँट सका ना ग़म क्यों तेरा
क्यों ना हो पाया मैं तेरा।