अमूर्त सलिल सरोज
अमूर्त
सलिल सरोजतमाशा कीजे और फिर तमाशबीन बने रहिए,
आग लगा के दुनिया में, आप नाजनीन बने रहिए।
घर तोड़िए और फिर घरवालों को भी तोड़ते रहिए,
और आप किसी महल की खबसूरत ज़मीं बने रहिए।
जिसका मरहम नहीं, दवा नहीं, वही दर्द बने रहिए,
सब ठीक होगा, ऐसा अखबारों में यकीन बने रहिए।
नालों, आहों, तकलीफ़ों का नया जामा पहनाते रहिए,
और खुद दिखावटी आँसू की मशीन बने रहिए।