खुदा से दुआ में हाथों का उठाना खत्म हुआ सलिल सरोज
खुदा से दुआ में हाथों का उठाना खत्म हुआ
सलिल सरोजउसके जाने के बाद ये फ़साना खत्म हुआ,
पल दो पल नहीं, इक ज़माना खत्म हुआ।
कागज़ की कश्तियों में सैर किया करते थे,
मोबाइल के आने से बचपना खत्म हुआ।
जब से वो लड़की हमारी गली छोड़ के गई,
खिड़कियों पर मेरा आना जाना खत्म हुआ।
जंगें लड़ी जाती हैं अमन - चैन के बा-वास्ते,
यह दलील सुनकर सब याराना खत्म हुआ।
अपने ही रिश्तों में कहाँ महफ़ूज हैं बेटियाँ,
जब से घरों में परदों का गिराना खत्म हुआ।
उसके रहते दुनिया की तंग - दिली देख कर,
खुदा से दुआ में हाथों का उठाना खत्म हुआ।