अच्छे और बुरे सब बिक जाने लगे हैं सलिल सरोज
अच्छे और बुरे सब बिक जाने लगे हैं
सलिल सरोजफिर वही याद आने लगे हैं,
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं।
खाते थे कसमें बहुत दोस्ती की,
वक़्त आने पे मुकर जाने लगे हैं।
जब भी पूछा कैसे लुटा काफिला,
साहब कोई नया गीत गाने लगे हैं।
कैसी हवा चली कि सब बदल गया,
साहिल छोड़ दरिया में जाने लगे हैं।
जादूगरी है, क्या तमाशा है, देखिए,
दर्द है बहुत पर मुस्कुराने लगे हैं।
वो लड़की जुर्म से पहले दोषी हुई,
अखबार जबसे क़ानून बताने लगे हैं।
बाज़ार की बदलती रवायत देख कर,
अच्छे और बुरे सब बिक जाने लगे हैं।