बिटिया की चिट्ठी  Shubham Amar Pandey

बिटिया की चिट्ठी

Shubham Amar Pandey

आज एक बिटिया की चिट्ठी आयी मेरे पास,
आँसू में भीगी रक्त सनी वो चिट्ठी बहुत उदास।
 

उसको देख के दिल घबराया लगी काँपने साँस
ऐसी भी चिट्ठी होती है हुआ नहीं विश्वास,
इन छीटों का कातिल भी है कोई इसका खास
डरते-डरते छुआ था मैंने मुझे हुआ आभास,
आज एक बिटिया की चिट्ठी................
 

उस बिटिया का हत्यारा था पूरा एक समाज
बेटा-बेटी रोग से बौना अभिमानी परिवार,
बिटिया को ताने देते तुम सुबह शाम और रात
और मनाते निराजली तुम बेटों के त्यौहार।
दादी को भी तनिक नहीं उस बिटिया से है प्यार
भूल गई लगता है वो औरत का एहसास,
आज एक बिटिया की चिट्ठी................
 

बिटिया एक पराया धन है माने ये संसार
उसके सपनों के पंख कुतर कर भेज दिया ससुराल,
लगी बेड़ियाँ पैरों में पर दौड़े वह दिन रात
सपने उसके पीछे छूटे अब तो बस परिवार।
हर बिटिया इससे पीड़ित है और यही हर बार
अपनी इस दानवता पर शर्मिंदा नहीं समाज,
आज एक बिटिया की चिट्ठी................
 

कपड़े वो कैसे भी पहने और करे श्रृंगार
फिर भी ताना मारे उसको ये संकीर्ण समाज,
उसकी इच्छा और पसंद तो खारिज है हर बार
कैदी की तरह उसे घरों में रखता है संसार।
कैद उसे करके घर में ही माने
खुद को ईश्वर पुरुष समाज,
आज एक बिटिया की चिट्ठी................

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