प्यार की नोंक - झोंक  Shubham Amar Pandey

प्यार की नोंक - झोंक

Shubham Amar Pandey

लड़का -
मैंने कभी नहीं माँगा था
हाथ तुम्हारा साथ तुम्हारा,
मैंने कभी नहीं माँगा था
प्रीत तुम्हारी ख्वाब तुम्हारा।
तुम्हीं पहल कर चली आई थीं
साथ निभाने, ख्वाब बनाने,
मैं, तुम, तुम, मैं को हम करने।
तुम्हीं पहल कर चली आई थी
मैंने कभी नहीं माँगा था..........
 

लड़की -
तुमने कभी नहीं माँगा था
हाथ ये मेरा, साथ ये मेरा,
क्यों ये झूठ, फरेब गढ़ रहे हो,
सारा दोष मुझ ही पे मढ़ रहे हो।
अरे बात क्या हो गई
जिस पर इतने बिफर रहे हो,
जिस विश्वास से प्रेम था जन्मा
नीचे क्यों उससे उतर रहे हो।
 

लड़का -
अच्छा,
मैं तुमसे अब बिफर रहा हूँ,
प्रेम की सीढ़ी उतर रहा हूँ,
ये कहते तुम्हे लाज न आई,
सच है कि प्रेम के बदले
मिलती है रुसवाई।
 

तुम कैसे ये भूल गई,
कि तुमको मैंने श्वास है माना,
अपना सच्चा साथी जाना।
तुममें मुझको राम हैं दिखते
जो मुझको मर्यादित करते,
तुम्ही तो मेरी कृष्ण कन्हैया
जिससे मैंने प्रेम है सीखा।
तुमने आकर एहसास जगाया
तुमने ही विश्वास दिलाया,
तुमने ही मुझ अक्खड़ को
सीधा सा इंसान बनाया।
और आज तुम्ही ..............
 

लड़की -
क्षमा करो यदि कड़वी बातें
मेरे अधर ने उच्चारित की हैं,
अब मैं ये जान गई हूँ
गलती अपनी मान गई हूँ,
रोष से अब ना मैं हारूँगी
क्रोध कपार ना धारूँगी,
पर
क्यों आँखें अब नीची हैं जी,
लब क्यों तुम्हारे काँप रहे हैं?
अश्रु धार नयन से बहते
शब्द कंठ को त्याग रहे हैं।
 

लड़का -
छोड़ो इन सब मसलों को
और कहो क्या आज खास है,
कहासुनी - झगड़े तो हो गए
पर प्रियतम मेरा मेरे पास है।

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