निमित्त प्रेम सलिल सरोज
निमित्त प्रेम
सलिल सरोजसिर्फ तुम्हारे लिए,
शब्दों के अथाह सागर में से
अगर ढूँढूँ
एक शब्द
तो मोती सा जो चमक उठता है
वो है प्रेम,
निमित्त प्रेम।
अधरों पे बसे कुछ अल्पविराम,
नयनों पे ठहरे कुछ अर्द्धविराम,
अक्षरों की जासूसी करके,
प्रस्फुटित होता है केवल एक आयाम
वो है प्रेम,
निमित्त प्रेम।
शब्दों के मायाजाल हैं जैसे
जुल्फों में लिपटे हुए कुछ सवाल
कंघी करके अपने ख्यालों की
निकाल पाता हूँ जो एक हल
वो है प्रेम,
निमित्त प्रेम।