कोई तो  सलिल सरोज

कोई तो

सलिल सरोज

कोई तो,
समय के भागते क़दमों में
बेड़ियाँ डाल दो।
 

मैं अभी उगना चाहती हूँ,
पनपना चाहती हूँ,
खिलना चाहती हूँ,
सूरज से कुछ किरणें उधार लेकर,
घने बादल के पार की
हँसी दुनिया देखना चाहती हूँ।
 

मेरी गुड़िया को कुछ देर और
मेरी ज़रुरत है,
खेतों में जाके
रंग बिरंगी तितली पकड़ने की
मेरी हसरत है,
मैं अपनी उड़ान की,
हद अभी देखना चाहती हूँ।
 

मेरी हथेली को अभी मेहँदी की नहीं
हवाओं को पकड़ने की आस है,
मेरी तमन्ना लिखने को अभी
कम लगता ये खुला आकाश है।
मैं अपने ख़्वाबों में
हज़ारों रंग भरना चाहती हूँ,
इस उम्र में माँ कहलाने से पहले,
कुछ बरस और मैं माँ कहना चाहती हूँ।
बापू को रुलाने से पहले, कुछ देर
और मैं हँसना चाहती हूँ,
अभी शादी करने से पहले,
कुछ देर और मैं जीना चाहती हूँ।

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