पंखों की फड़फड़ाहट Gautam Kumar Sagar
पंखों की फड़फड़ाहट
बच्चों के विदेश जाने के बाद जीवन कितन नीरस और बेरंग हो जाता है, ना त्योहार अच्छे लगते हैं, ना बड़े घर और न पैसा खुशी देता है। बीमार होने पर केवल स्कायप पर उसे वर्चुअल देख सुन कर दिल भर आता है। शुभम तो कहता है कि अब वह वहीं बस जाएगा, वहीं की लड़की से शादी भी कर ली, हमें बुलाया था, बस कुछ सिग्नेचर हुए और विवाह संपन्न।
पूरी कॉलोनी कुलभूषण जी को बधाई देने आई, केवल पड़ोसी केतन भाई नहीं आए। कुलभूषण जी की पत्नी ने हाथ नचाते हुए कहा, "देखते हो, कितने जलते हैं। इनका लड़का यूएसए गया था तो कितनी डींगें हाँकते थे, कितना गुमान करते थे। अब इस साल हमारा जीतू कैर्लिफ़ोनिया में जॉब करने जा रहा है तो औपचारिकता निभाने तक नहीं आए।"
"छोड़ो भी, जलन तो होगी ही कि हमारे लड़के ने इनके लड़के से कैसे बराबरी कर ली", शांतिप्रिय कुलभूषण जी भी थोड़े अकड़ में आ गए।
रात के दस बजे केतन भाई कुलभूषण जी के घर आए। मुँह बिचका कर बैठे दंपति से वे बोले ,"बधाई, आपका जीतू कैर्लिफ़ोनिया जा रहा है।" केतन भाई का चेहरा उतरा हुआ था। औपचारिकता वश एक प्याला कॉफ़ी लिया और बिना ज़्यादा बात किए निकल गए।
केतन भाई सोच रहे थे "कुलभूषण यार, बच्चों के विदेश जाने के बाद जीवन कितन नीरस और बेरंग हो जाता है, ना त्योहार अच्छे लगते हैं, ना बड़े घर और न पैसा खुशी देता है। बीमार होने पर केवल स्कायप पर उसे वर्चुअल देख सुन कर दिल भर आता है। शुभम तो कहता है कि अब वह वहीं बस जाएगा, वहीं की लड़की से शादी भी कर ली, हमें बुलाया था, बस कुछ सिग्नेचर हुए और विवाह संपन्न। दो साल में एकाध बार आ जाता है। कहता है यहाँ अब जी नहीं लगता, जल्दी वापस लौटने की फिराक में रहता है। हमें भी वहीं रहने को बुलाता है मगर निठल्लों की तरह एक पराई धरती पर पड़े रहना किसी काले पानी के सज़ा से कम नहीं। दूसरों को देखकर एक अंधी ख्वाहिश पाल ली थी कि बेटे को विदेश भेजना है, समाज में खूब रुतबा बन जाएगा, खूब पैसे आ जाएँगे। मगर अब सब "मृग मरीचिका" प्रतीत होता है। अब तो शायद मरने पर दूसरे के कंधे ही नसीब हो, बेटा तो......." केतन भाई की आँखे भीग गईं थी। घोर अंधकार में एक निशा पक्षी के पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई देती है।