बेटियाँ त्याग करती हैं  VIVEK ROUSHAN

बेटियाँ त्याग करती हैं

एक दिन परेशान हो कर काजल ने अपनी माँ से पूछा - माँ, प्रिंस मुझसे छोटा है और वो शहर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाता है, तो मैं क्यों नहीं जा सकती ? उसकी माँ ने कहा - प्रिंस लड़का है और तुम लड़की हो इसलिए।

नरेश एक किसान था जिसके दो बच्चे थे। एक लड़की जिसका नाम काजल था और एक लड़का जिसका नाम प्रिंस था। नरेश अपने पूरे परिवार के साथ अपने पैतृक गाँव में रहता था जो शहर से दस किलोमीटर की दूरी पर था। नरेश खेती करता था और उसकी पत्नी घर में खाना बनाया करती थी।

दोनों बच्चे बड़े हो रहे थे। काजल सात साल की हो गई थी और प्रिंस पाँच साल का हो गया था। नरेश अपने बच्चों को अच्छी तालीम देना चाहता था। इसलिए नरेश ने गाँव के कुछ पढ़े लिखे लोगों से विचार-विमर्श कर के अपने लड़के प्रिंस का दाखिला शहर के एक प्राइवेट स्कूल में और लड़की काजल का गाँव के ही सरकारी स्कूल में करवा दिया। काजल को अपने पिता का ये भेदभाव अच्छा नहीं लगा। काजल समझ नहीं पा रही थी कि उसके पिता ने ऐसा क्यों किया ?

इसलिए एक दिन परेशान हो कर काजल ने अपनी माँ से पूछा - माँ, प्रिंस मुझसे छोटा है और वो शहर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाता है, तो मैं क्यों नहीं जा सकती ?

उसकी माँ ने कहा - प्रिंस लड़का है और तुम लड़की हो इसलिए।

काजल अपनी माँ के उत्तर को समझ नहीं पा रही थी या वो समझने को तैयार नहीं थी। काजल ज़िद करने लगी अपनी माँ से कि वो भी प्रिंस की तरह शहर के प्राइवेट स्कूल में जाएगी, क्योंकि गाँव के सरकारी स्कूल में पढाई नहीं होती। काजल ने अपनी माँ को अपने सपने के बारे में भी बताया जो वो बड़े होकर और अच्छा तालीम ग्रहण कर के बनाना चाहती थी।

माँ की ममता तो सब के लिए बराबर ही होती है, इसलिए माँ ने काजल से कहा कि आज रात वो बात करेगी इसके बारे में उसके पिता से। काजल अपनी माँ की बातों को सुनकर बहुत खुश हुई और अपने सपनों के बारे में सोचते, अपने दोस्तों के साथ हँसते-खेलते अपने स्कूल चली गई।

रात को नरेश आया, काजल की माँ ने खाने पर नरेश को बात कही कि काजल ज़िद कर रही है प्रिंस के स्कूल में पढ़ने के लिए, उसका भी दाखिला शहर के स्कूल में करवा दीजिये। दोनों बच्चे एक साथ एक ही स्कूल में जाएँगे तो अच्छा रहेगा।

नरेश अपनी पत्नी की बात सुनकर गुस्सा हो गया।

नरेश ने उत्तर दिया - लड़की बाहर जा कर नहीं पढ़ती है, पढ़ना है तो पढ़े नहीं तो घर में बैठ कर चूल्हा-चक्की करे और खाना बनाने में तुम्हारी मदद करे।

थोड़ी देर बाद गुस्से स्वर में नरेश ने अपनी पत्नी से कहा कि, प्रिंस पढ़ेगा तो बुढ़ापे में हमारा सहारा बनेगा, हमारी देख-भाल करेगा, काजल तो कल को बड़ी हो कर शादी कर के दूसरे घर में चली जाएगी, और मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं दोनों बच्चों का दाखिला शहर के स्कूल में करवा सकूँ। इसलिए काजल को पढ़ना है तो पढ़े नहीं तो घर में बैठ जाए, गाँव की और लड़कियों की तरह।

काजल सोई नहीं थी, कोने में छुप कर वो अपने माता-पिता की सारी बातें सुन रही थी। अगले दिन से काजल ने अपनी माँ से ज़िद करना छोड़ दिया था। काजल सरकारी स्कूल में ही जाया करती थी और अपने भाई को पढ़ने में मदद किया करती थी। काजल बच्ची थी पर परिस्थिति ने उसको समझदार बना दिया था, उसने अपने सपने को छोड़ दिया था।

अपने विचार साझा करें


  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com