समीर-सागर की होली VIKAS UPAMANYU
समीर-सागर की होली
प्रस्तुत कहानी के माध्यम से बताया गया है कि हमेशा एक दोस्त ही बुरे वक्त पर काम आता है।
समीर और सागर दो दोस्त थे। एक बार होली के मौके पर वो दोनों किसी के साथ शहर में होली के एक प्रोग्राम पर चले गए, वहाँ उन्होंने बहुत सी सुन्दर बालिकाओं को होली खेलते हुए देखा। उनको देखते-देखते बहुत ही प्रसन्न हो गए, समीर बोला, "सुन सागर : देख सामने क्या जोवन की बेला है।" तभी पास में खड़े एक नोजवान ने बोला : (देखो मगर ध्यान से) “कल ही इसके भाईयों ने मुझे पैला है।” कुछ देर बाद ही उनमे से किरण नाम की लड़की सागर के पास आई और रंग डालते हुए बोली बुरा न मानो होली है।
केवल सागर के साथ रंग खेलने पर समीर को गुस्सा आ गया और बोला -
लंबे-लंबे कान इसके, काला इसका रूप है,
छोड़ दिया हीरो को तुमने, क्या पसंद ये लंगूर है?
समीर कि ये बात सुनकर सागर को भी गुस्सा आ गया और बोला :
गोरा है रूप तेरा, अखिलेश जैसी नाक है,
घमंड करे रूप का, इसलिए खाली हाथ है।
ये बात बोलकर सागर अकेला एक कोने में जाकर बैठ गया, समीर उस लड़की और उसकी सहेलियों के साथ होली खेलता रहा। होली कि मस्ती करते-करते समीर का पैर फिसल गया और वो बहुत जोर से गिर गया। गिरने के कारण बहुत जोर-जोर से चिल्लाने लगा, समीर को चिल्लाते देख वहाँ होली खेल रहे सभी लोग चले गए, अब समीर अकेला रह गया और अपने दोस्त सागर को याद करने लगा। समीर को रोता देख सागर से रहा नहीं गया, वो दोड़कर समीर के पास गया और उसको डॉक्टर के यहाँ ले गया और उसका इलाज करा कर घर ले आया।
घर आकर सागर बोलता है :
तोड़ दिया मेरे दोस्त का कुल्हा, होली के हुडदंग में,
और फुर्र हो गयी लैला, एक सेकंड में।
ये बात सुनकर समीर बोला भाई अब तो मुझे छोड़ दे मेरे इतने मजे मत ले। गलती की थी मैंने उसकी सजा मुझे मिल गई। मैं तो बस यही कहना चाहूँगा कि किसी भी परिस्थिति में अपने दोस्तों को नहीं छोड़ना चाहिए। समीर की ये बात सुनकर दोनों एक दूसरे के गले लग गए और फिर से खुशी-पूर्वक रहने लगे।