जीने की ताकत Anupama Ravindra Singh Thakur
जीने की ताकत
मेरे अनुसार एक आदर्श जीवन ऐसा होना चाहिए जिसमें सुख हो, दुःख हो, शांति हो और चैन भी हो। दो वक्त की रोटी और सबसे बड़ी बात प्रेम और विश्वास भी हो।
आज फिर एक नई बाई रखी है स्कूल वालों ने, पता नहीं बाइयों को निकालने में इन्हें कौन सा संतोष मिलता है?
दुबली- पतली सी, दुर्बल, सांवला चेहरा, गेहुँआ रंग, हाथ में डंडा लिए वह पोंछा लगा रही थी। मुझे देखते ही नमस्ते कर मुस्कुराई। मैंने पूछा कहाँ से हो? मुस्कुराते हुए उत्तर मिला- "नजदीक के छोटे से गाँव से हूँ। 18-20 वर्ष की आयु होगी उसकी।
मैंने जिज्ञासावश पूछा, "पति क्या करते हैं?" थोड़ी सहम सी गई और रूककर बताया, "गुजर गए।" मैं स्तब्ध रह गई कुछ सूझ नहीं रहा था कि अब क्या बोलूँ! इतनी छोटी उम्र में इतना संघर्ष !
हिम्मत करके पूछा, "बच्चे कितने हैं?" आँखें तरल थी और चिंतित भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे, उसने कहा , "2 साल का एक लड़का और 6 साल की लड़की है।" फिर थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोली, "माँ रहती है ना मेरे साथ, पिता तो बचपन में ही गुज़र गए थे ना।" मैं विस्मित थी, उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी।
बस इतना ही परिचय हो पाया था, और मैं अपने काम में व्यस्त हो गई। हर दिन वह मुझे मुस्कुराते हुए नमस्ते करना ना भूलती। मैं भी नमस्ते कहती। एक दिन सुबह वह मेरे पास कागज़ की पोटली लेकर पहुँची और मुझे देने लगी, मैंने पूछा -"क्या है?" वह बोली, "मामा के खेत है, उसमें से थोड़े मूँग ले आई हूँ, सेंक कर खाना, बड़े स्वादिष्ट लगते हैं।"
मैं उसके इस व्यवहार से स्तब्ध रह गई जो, स्वयं असहाय और संघर्ष करके एक समय का भोजन भी मुश्किल से जुटा रही है, वह केवल जरा सी सहानुभूति और आत्मीयता के दो-चार शब्द बोलने पर मेरे लिए कुछ लेकर आई है। इन विकट परिस्थितियों में उसे इन चीजों की सबसे ज्यादा जरूरत है। ऐसे में भी वह दूसरों के लिए सोच रही है। उसकी यह उदारता मुझे अच्छे-अच्छे पूंजीपतियों को लजाने वाली लगी। उसके जीवन के प्रति उत्साह एवं सकारात्मक दृष्टिकोण ने मुझे अपने बौनेपन की अनुभूति करवाई। कुछ लोग संघर्ष एवं कठिन परिस्थितियों से डरते नहीं बल्कि उसे अपने जीवन का आवश्यक अंग मानकर चलते हैं, तभी तो वे हर परिस्थिति में खुश रहते हैं।
जब जीवन का सबसे मूल्यवान सच संघर्ष ही है तो हममें से हर किसी को इससे बचने की कोशिश नहीं करना चाहिए।