यही सच है Shambhu Amalvasi
यही सच है
अंदर की ज़िन्दगी को बाहर से अलग रखते हुए ... एक छोटी से कहानी
घर है उसका, हँसी गूँजती है घर में उसके, साथ रहता है उसका पूरा परिवार! रोज रोशनलाल अपनी साईकल लिए चल पड़ता है। चेहरे -पे मुस्कान लिए घर से कुछ दूरी नापते ही वो मुस्कान कहीं ग़ायब हो जाती है कि आज भी उसका समान बिकेगा या नहीं। कई दिनों से सोच रहा है अगर ऐसे ही चलता रहा तो मेरे परिवार की खुशियाँ कहीं गुम ना हो जाएँ। मैंने तो 10 साल पहले ही अपनी खुशियों को मार दिया था। मैं इस झूठी मुस्कान को बनाए रखता हूँ ... ताकि ये मोहल्ले के लोग ये समझ लें कि मैं अपने परिवार को खुश रखता हूँ। घर में सभी इस झूठी मुस्कान को बनाए रखते हैं सब ही घर के लोग ... एक दूसरे को ... मोहल्ले के लोगों से कम नहीं मानते.....यही सच है।