शिक्षित बेटी सुरक्षित भविष्य  ARUN KUMAR SHASTRI

शिक्षित बेटी सुरक्षित भविष्य

बेटी पढाओ भविष्य बनाओ। समाज को जागरूक करने के लिए माता पिता की सजगता व बेटी के अधिकार की पृष्ठभूमि में लिखी गई रचना जिसका कथानक सदा बेटियों को प्राथमिकता देने का उद्घोष किया करता है। बेटियों को सौंप कर तो देखिये जिम्मेदारी वो आपके भरोसे को कभी टूटने नही देंगी।

वीणा की माँ बहुत बीमार थी। पिता पहले से ही बिस्तर पर थे एक एक्सीडेंट के चलते अपाहिज। वो अकेली संतान थी, माँ ने उसको येन केन प्रकारेन, १०वी पास करा दी थी। आजकल वो पड़ोस की आंटी से सिलाई कढाई सीख रही थी लेकिन उसका मन अपनी बचपन की स्पोर्ट मुक्केबाजी में अटका रहता था। एक दिन जैसे ही वो सिलाई कढ़ाई वाली आंटी के घर से अपने घर आई उसने नयाल सर की बाइक अपने घर के आँगन में देखी। अंदर आई तो वो ही थे, उसके पिता के पास बैठे उनके हाल चाल ले रहे थे।

उसकी तो साँस ही रुक गई, जब थोड़ा सम्भली तो अंदर आके उनके पैर छुए। इतने में उसके पिता ने उसको अपने पास बिठा उस के सर पर वात्सल्य से हाथ फेरते हुए कहा : बेटी तेरे गुरु जी तुझे लेने आये हैं, बोल क्या कहना है, हम दोनों को कोई आपत्ति नहीं। उसको तो मानो विश्वास ही नहीं हुआ, उसने पिता के चरणों में सर रख दिया उसके आँसू पिता के चरण धोने लगे। माहोल एक दम से बहुत भावुक हो गया था, उसकी माँ कैसे न कैसे चल के आई उसको उठा के अपने सीने से लगा के बोली, बेटी मैं जानती थी नयाल सर को मैंने ही बुलाया है तू अपने मकसद को अंजाम दे, तेरे दिल की तेरी माँ न समझे गी तो कौन समझेगा।

उसको तो जैसे भगवान मिल गए। बस उस दिन से उसकी परीक्षा शुरू। प्रैक्टिस , सिलाई कढाई जिम घर के काम काज ११ कक्षा की पढाई, साथ-साथ स्पोर्ट्स कोटे की स्पेशल वजीफा दिन भर की घर की जरुरत सब पूरी होने लगी, उसने अपना सब कुछ इन्ही मकसद में झोंक दिया था।

नयाल सर उसके लिए घर का खाना लाते थे, उनकी बच्ची भी उसके साथ ही थी दोनों एक क्लास में थे। फिर एक दिन एक प्रांतीय बॉक्सिंग का नोटिस आया, उसने अपने कोच के कहने से उसमे एंट्री भर दी उसका सिलेक्शन भी हो गया। ५ दिन बाद इवेंट था गोहाटी में।उसके ६ घंटे डेली प्रैक्टिस में जाते थे और और स्टेट लेवल के उस इवेंट में वीणा को गोल्ड मिला। उसका पहला अंतरप्रांतीय गोल्ड साथ ही डबल स्कोलरशिप, केन्द्रीय इंडस्ट्रियल सिक्यूरिटी फोर्स में सह अधीक्षक की भरती के लिए निमंत्रण। ये सब ऐसे हुआ जैसे साक्षात प्रभु ने उसके अच्छे दिनों का ऐलान कर दिया। एक बेटी होने के साथ उसको अपने माँ पापा को सम्भालने का भाग्य भी मिला। उसने ११ की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की।

जिस किसी भी बॉक्सिंग इवेंट में वो गई गोल्ड लेकर आई, उसकी अलमारी का एक खाना उसके मेडल्स व् प्रमाण पत्रों से भर गया था। १२वीं के मध्य में आते-आते उसने केन्द्रीय इंडस्ट्रियल सिक्यूरिटी फोर्स में सह अधीक्षक की भरती के लिए सभी टेस्ट क्वालीफाई किए, फिजीकल उसका फर्स्ट १० रैंक आया और वो CISF में SI के लिए सेलेक्ट हो गई। इन दो सालों में उसके जीवन में उसकी प्रभु की कृपा नयाल सर की कठोर प्रेक्टिस, माँ पापा का भरोसा, ये सब भारत की कन्याओं को कहाँ नसीब होता है लेकिन उसको हुआ और उसने उनका पूरा सम्मान भी रखा।

आज उसके माँ बाप अपनी बेटी की बलाएँ लेते नहीं थकते, उन्हें वो दिन खूब याद है उनके खानदान के सभी उनसे मुँह मोड़ गए थे कि कहाँ लड़की जात को बॉक्सिंग में डाल रही है, हाथ से निकल जाएगी। कुछ ऊँच नीच हो गई तो बुढ़ापे में कहाँ मुँह छुपाते रहोगे, आज वही दबी जुबान से अपनी बेटियों को उसका उदहारण दे दे थकते नहीं।

बेटी शिक्षित है तो भविष्य भी सुरक्षित है।

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