नुमाईश  Anupama Ravindra Singh Thakur

नुमाईश

हर लड़की समाज में व्याप्त रूढ़िवादी परम्पराओं से मुक्ति चाहती है। ऐसा नहीं है कि वह परिवार तोड़ने या पुरुषवर्ग का विरोध करती है वरन वह परिवार भी चाहती है और पुरुष का सहारा भी लेकिन साथ ही साथ वह स्वतन्त्र पहचान और अपना स्वतन्त्र अस्तित्व भी कायम करना चाहती है।

आज फिर घर में मातम का माहौल था, सभी के मुँह लटके हुए थे, हमेशा की तरह माँ भगवान के सामने जाकर बैठ गई। सुरभि भी बिल्कुल उदास सी एवं बेमन से किचन में जाकर खड़ी हो गई। पिताजी माथे को मलते देहलीज के पास बैठ गए। आदित्य ने बाहर से आते ही पूछा क्या हुआ माँ? लड़के वालों को सुरभि पसंद तो आई ना?

माँ जैसे जड़ हो गई थी, कुछ देर मौन रही, फिर जबरदस्ती अपने जिह्वा को उठाकर बोली, "नहीं उनके लड़के को सुरभि पसंद नहीं आई।"
भगवान भी न जाने कौन सी परीक्षा ले रहा है। लोग घर में आते हैं, तो सुरभि को कम और घर की कंगालियत को अधिक देखते हैं, लड़की कितना भी पढ़ ले, लिख ले, दहेज का दानव अभी भी पैर पसारे बैठा है, कहाँ से लाएँगे इतने पैसे, जिससे लड़के वाले खुश हो जाएँ?

रसोई घर में खड़ी सुरभि सब सुन रही थी, उसे तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह अपने आपको इसलिए कोसे कयोंकि वह एक लड़की है या फिर इसलिए कोसे कि उसने एक कंगाल परिवार में जन्म लिया है! उसकी आँखों में जैसे समुद्र समा गया हो, दोनों आँखों से अश्क उसके खुश्क गालों पर लुढ़कने लगे।

अपने विचारमग्न पिता की ओर तथा चिंता में खड़े हुए भाई की ओर, भगवान के समक्ष बैठी रोती माँ की ओर उसने एक दृष्टि डाली। अपने आँसू पोंछे और पता नहीं मन ही मन कुछ निर्णय कर उठ खड़ी हुई, माँ के निकट जाकर रुँआसी आवाज में बोली, "माँ और कितनी नुमाईशें होंगी, प्रतिदिन वही नुमाइश, उठो तैयार हो जाओ, सज-धज कर बैठ जाओ और फिर कोई नाम पूछेगा, कोई चलने लगाएगा, कोई गाना गाने लगाएगा, किसी को मेरी पसंद की तो कोई चिंता ही नहीं। लड़के ने पसंद कर लिया, काफी है। यह कैसा समाज है जहाँ देश की लड़कियाँ अन्तरिक्ष में जा रही हैं परंतु फिर भी समाज में आज भी लड़की का अपना खुद का कोई अस्तित्व नहीं है? यहाँ हर घर में एक निकम्मा लड़का पल सकता लेकिन एक खुद्दार बेटी माँ-बाप पर बोझ बन जाती है। लोग क्या कहेंगे इस चक्कर में और कितनी लड़कियाँ इस नपुंसक समाज की बली चढ़ेंगी?"

माँ सुरभि को एकटक निहरे जा रही थी, उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सुरभि में माँ दुर्गा का संचार हुआ हो, लग रहा था जैसे वह अपने तेज से इस रूढ़िवादी एवं पुरूषवादी समाज का नाश कर देगी। माँ ने अपने दोनों हाथ जोड़कर उसे प्रणाम करते हुए कहा कि मुझे माफ कर दे सुरभि बेटा, मैं मूर्ति में बसी देवी की शक्ति उपासना करती आई पर अपने घर की वास्तविक शक्ति को भूल गई। भूल गई कि तुम्हारे भी अपने जज्बात हैं, तुम्हारी भी अपनी इच्छाएँ हैं, तुम कोई वस्तु नहीं हो जिसकी बार-बार नुमाइश लगे। तुम्हारा भी हृदय आहत होता है। हर वह रूढ़ि जो समाज और स्त्री के विकास में बाधक बने उनका टूटना आवश्यक है। तुम्हारी माँ इस सम्मान की लड़ाई में तुम्हारे साथ है।

पिता ने चिंता से भरा हाथ अपने सिर से हटाया और सुरभि के सिर पर रखते हुए कहा कि जब तक तुम्हरा उचित सम्मान करने वाला न मिल जाए तब तक तुम विवाह बन्धन में ना बँधना, इस सम्मान की लड़ाई में तुम्हरा पिता तुम्हारे साथ है। आदित्य से भी अब रहा न गया, वह सुरभि के निकट पहुँचा और उसके आँसू पोंछते हुए बोला, "सुरभि दी, आपने मेरी आँखें खोल दीं, आज से सिर्फ आपने बहन का ही नहीं, हर स्त्री का मैं सम्मान करूँगा, इस सम्मान की लड़ाई में तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ है।

अपने विचार साझा करें


  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com