छह दिन की खुशी  Lakshmi Agarwal

छह दिन की खुशी

वर्षों से रश्मि ने जिस पल का इंतज़ार किया, वह क्षण आज उसके जीवन में आया है। पर कहीं यह खुशी क्षणिक तो नहीं या उसके जीवन की एक नई दिशा है।

रश्मि और वैभव की शादी को 10 साल हो गए थे। समृद्ध-संपन्न परिवार में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। कमी थी तो बस एक संतान की। दोनों राह देख रहे थे कि कब उनके घर-आँगन में भी शिशु की किलकारियाँ गूँजे। एक नन्हीं सी कली उनके संसार को महकाए। औलाद की चाह में दोनों ने तमाम चिकित्सीय जाँच करवा ली थी, पर दोनों में से किसी में कोई कमी नहीं थी। बावजूद इसके रश्मि की गोद आज तक सूनी थी।

रश्मि दुनिया वालों के ताने सुन-सुनकर गहरे अवसाद में जाने लगी। संतान-प्राप्ति की उसकी चाह बहुत प्रबल होने लगी। इसलिए अब उसने आईवीएफ के बारे में सोचा और एक दिन मौका पाकर वैभव से बोली, वैभव सुनो, मैंने आईवीएफ के बारे में बहुत कुछ सुना है। इसकी सहायता से कई निःसंतान दंपती के जीवन में खुशियाँ आई हैं। क्यों न हम भी इस तकनीक का सहारा लेकर अपनी वीरान जिंदगी में खुशियों के रंग बिखेर लें। नहीं रश्मि, आईवीएफ से शरीर को बहुत नुकसान होता है। बहुत तकलीफ सहनी पड़ती है इस प्रक्रिया में। तुममें कोई कमी भी नहीं है तो फिर क्यों तुम इस बारे में सोच रही हो। मैं तुम्हें ऐसी बेवकूफी हरगिज करने नहीं दूँगा, वैभव ने कहा।

वैभव की बातें सुनकर रश्मि निराश होते हुए बोली तो क्या हम जीवन भर औलाद के सुख से वंचित रहेंगे। क्या मैं कभी किसी पर अपनी ममता नहीं लुटा पाऊँगी? बिलकुल नहीं रश्मि। तुम भी माँ बनोगी और एक बहुत अच्छी माँ बनोगी ऐसा मेरा विश्वास है, वैभव ने रश्मि को समझाते हुए कहा, पर इसके लिए तुम्हें आईवीएफ का सहारा लेने की ज़रूरत नहीं है। हम एक प्यारी सी बिटिया को गोद ले लेंगे। इस तरह एक अनाथ बच्ची को परिवार मिल जाएगा और हमें संतान-सुख, वैभव ने अपनी बात पूरी की। पर वैभव वो हमारा खून तो नहीं होगा न, क्या उसमें घर-परिवार के संस्कार आ पाएँगे। पता नहीं वह किस धर्म-जाति की होगी। ऐसे कैसे हम किसी को भी अपनी औलाद के रूप में स्वीकार कर लें। रश्मि ने कुछ चिंतित होते हुए कहा।

पढ़ी-लिखी होकर भी तुम यह कैसी बातें कर रही हो रश्मि? संस्कार खून से नहीं परवरिश से आते हैं। मुझे तुम्हारी परवरिश पर पूरा भरोसा है। तुम अपनी संतान को अच्छे गुण व संस्कार दोगी। चाहे वह बच्ची किसी भी धर्म-जाति की हो, हमारे घर में आने के बाद वह हमारे घर की लक्ष्मी होगी। अपने नन्हें कदमों से हमारे घर-आँगन को चहकाएगी। इसलिए यह सब पुरानी बातें छोड़ दो और खुले मन से बेटी के स्वागत के लिए तैयार हो जाओ, मैं जल्द ही गोद लेने संबंधी सारी औपचारिकताएँ पूरी कर लूँगा, वैभव ने समझाते हुए कहा। रश्मि के मन में अपना बच्चा पाने की चाह थी, पर इच्छा पूरी न होते देख उसने अनमने ढंग से बच्चा गोद लेने को हामी भर दी।

वैभव ने बच्चा गोद लेने संबंधी औपचारिकताओं के बारे में पता लगाकर उन पर काम करना शुरू कर दिया था, परन्तु बच्चा गोद लेना इतना आसान भी न था। उससे पहले जाने कितने लोग अपने घर-आँगन में खुशियाँ लाने को पंक्तिबद्ध थे। जीवन की भागदौड़ करते 6 महीने कैसे और बीत गए पता ही न चला। इस महीने रश्मि सकारात्मक ऊर्जा से भरी हुई लग रही थी। न जाने कौन सी खुशी थी जो उसके चेहरे और व्यवहार में अनायास ही छलकने लगी थी। आजकल वह शरीर से तो सुस्त-रुग्ण सी रहती, जल्दी थक जाती पर बावजूद इसके जीवन को खुलकर जीना सीख गई थी। रश्मि में आए इस बदलाव को देखकर वैभव भी बहुत खुश था। एक दिन रश्मि ने वैभव से कहा, मुझे लगता है कि मैं गर्भवती हूँ। पता नहीं कैसे इस बार ऐसा लग रहा है कि खुशियों ने हमारे घर का रास्ता ढूँढ ही लिया है। आप मुझे जाँच किट ला दीजिए, मैं पहले घर पर ही जाँच करना चाहती हूँ। रश्मि की बात सुन वैभव थोड़ा आशंकित था उसकी गर्भावस्था को लेकर क्योंकि अभी तो उसकी माहवारी आने में भी 5 दिन शेष थे फिर रश्मि इतनी जल्दी पूर्ण विश्वास के साथ यह सब कैसे कह सकती है। पर उसकी खुशी देखकर वह चुप ही रहा। हाँ-हाँ, क्यों नहीं, जरूर ला दूँगा। रश्मि को चहकता देख इतना ही कह पाया वैभव।

अगले दिन उठते ही रश्मि ने मूत्र परीक्षण किया, जिसमें पहले तो एक ही गुलाबी लाइन आई परंतु देखते ही देखते दूसरी फैंट लाइन भी उभर आई। रश्मि की खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही न रहा। वह भागी-भागी कमरे में आई और वैभव को जाँच किट दिखाई। वैभव को भी पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ फिर भगवान की इस कृपा पर नतमस्तक हो गया। रश्मि खुश तो थी पर स्पष्ट लाइन की जगह फैंट लाइन ने उसको आशंकित कर दिया था। वैभव के सामने अपनी आशंका जाहिर करते हुए उसने रक्त जाँच करवाने की बात की। वैभव मैं एक बार रक्त जाँच करवाकर पूर्ण रूप से आश्वस्त होना चाहती हूँ। हम अभी पहले रक्त जाँच करवाने चलते हैं। रश्मि का तो जैसे एक पल काटना भी मुश्किल होता जा रहा था। वैभव ने उसकी बात से सहमति जताते हुए कहा, हाँ-हाँ, क्यों नहीं।अभी चलते हैं। रश्मि फटाफट जाकर रक्त जाँच करवा आई पर रिपोर्ट शाम तक मिलनी थी। शाम तक का समय काटना उसके लिए इतना भारी पहले कभी नहीं हुआ था। फैंट लाइन को लेकर वह बार-बार आशंकित हो रही थी कि आखिर इसका क्या मतलब है? शाम तक उसने गर्भावस्था से जुड़ी सभी जानकारियाँ पढ़ ली थीं पर कुछ भी संदेहास्पद नहीं लगा। सबकुछ पढ़ने के बाद उसके सवालों का एक ही जबाव था कि गर्भावस्था की बहुत ही शुरुआती चरण में परीक्षण करना फैंट लाइन उभरने का प्रमुख कारण हो सकता है। शाम हुई और उसका इंतजार ख़त्म हुआ। रक्त जाँच की रिपोर्ट ने भी उसकी गर्भावस्था की पुष्टि की पर फिर जाने क्यों वह अब भी सशंकित और भयभीत थी पर किसी तरह अपने मन से डर निकालकर उसने इस खुशी को भरपूर जीने का निर्णय लिया।

अगले दिन वह मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर डॉक्टर को दिखाने पहुँची। शादी के इतने साल बाद गर्भवती होने की वजह से डॉक्टर ने उसे अपना खास ध्यान रखने और एहतियात बरतने की सलाह दी। देखिए मिसेज रश्मि, सबसे पहले तो आपको बहुत-बहुत मुबारकबाद। जैसा कि आप जानती हैं कि लम्बे इंतजार के बाद यह खुशी आपके जीवन में आई है तो आपको अपना बहुत ज्यादा ध्यान रखना होगा। दवाई और खान-पान में किसी भी प्रकार की लापरवाही से बचना होगा। शुरुआती 3 माह आपके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। क्योंकि यह आपकी शुरुआती अवस्था है इसलिए अभी कोई जाँच नहीं लिख रही पर छठे सप्ताह में आप अल्ट्रासाउंड करवाकर मेरे पास आएँगी, बाकी की जाँच मैं तब लिखूँगी। जी बिलकुल डॉक्टर, मैं आपकी हर बात का ध्यान रखूँगी, चहकते हुए रश्मि ने कहा। दोनों वापस घर की ओर चल दिए। वैभव आपको मुझसे हमेशा शिकायत रहती है न कि मैं दवाईयों के मामले में बहुत कोताही बरतती हूँ, खाना भी समय पर नहीं खाती। पर देखना इस बार मैं कैसे आपकी सब शिकायतें दूर करती हूँ, रश्मि ने चुहल करते हुए कहा। जी मैडम, वैभव ने भी शरारती अंदाज़ में कहा।

दो दिन बीत गए तीसरा दिन आया। आज रश्मि अपने होने वाले बच्चे के जन्म के बाद होने वाले समारोह और उनमें बुलाए जाने वाले अतिथियों की सूची बनाने लगी। रश्मि तुम ये योजनाएँ बनाने में ज्यादा जल्दबाजी नहीं कर रही। अभी तो बहुत समय है और तुम तो ऐसे तैयारियाँ कर रही हो जैसे कि अगले सप्ताह ही सबकुछ होने वाला है। वैभव ने चिढ़ाते हुए कहा। आप तो बस चुप ही रहिए, समय कैसे पंख लगाकर उड़ जाएगा पता भी नहीं चलेगा। इसलिए आप बस मुझे मेरे मन का कर लेने दीजिए और मेरी जगह अपने काम-धंधे पर ध्यान दीजिए, रश्मि ने चिढ़ते हुए कहा। जी मैडम, जैसी आपकी मरजी। बंदा तो बस आपका ही गुलाम है। वैभव ने शरारती अंदाज में कहा तो रश्मि खिल उठी।

चौथे दिन से रश्मि ने बच्चे का कमरा कैसे होगा उसमें क्या-क्या आवश्यकता होगी, इन सबके बारे में सोचना शुरू कर दिया। रश्मि की इस तरह की जल्दबाजी वैभव को थोड़ी अजीब लगी पर फिर उसने सोचा कि काफी इंतजार के बाद यह दिन उसके जीवन में आया है, शायद इसलिए रश्मि पूरी तरह से इन खुशियों को जी लेना चाहती है। पर किस्मत ने उनके लिए कुछ और सोच रखा था, इस बात से दोनों अनभिज्ञ थे। आने वाले बच्चे की कल्पना करते-करते पाँचवाँ दिन भी खुशी-खुशी बीत गया पर शाम होते-होते जैसे अनहोनी ने दस्तक दे दी थी। रश्मि कुछ असहज महसूस कर रही थी। उसे बहुत बेचैनी हो रही थी इसलिए उसने रात का खाना खाकर जल्दी सोने का निर्णय लिया। थोड़ी देर बाद वह सो भी गई। परन्तु मध्यरात्रि पेट में दर्द होने के कारण उठ गई। वैभव दिन भर के थके होंगे यह सोचकर उसने वैभव को नहीं उठाया और दर्द निवारक दवा लेकर लेट गई थोड़ी देर तो दर्द कम रहा लेकिन फिर बढ़ गया। इस बार उसे लगा कि शायद गैस या बदहजमी हो रही है तो वह गैस की टेबलेट लेकर फिर लेट गई लेकिन कुछ आराम पड़ता उल्टा उसकी बेचैनी बढ़ गई तो बाहर खुली हवा में चली गई कुछ देर। थोड़ी देर टहलने के बाद जब उसे फर्क महसूस हुआ तो वापस कमरे में आकर सो गई। दो घंटे सोने के बाद उसे फिर असहनीय पीड़ा हुई, अब तक सवेरा हो चुका था तो उसने वैभव को उठाकर पूरी बात बताई। तुमने मुझे रात में ही क्यों नहीं उठा दिया था, डांटते हुए वैभव बोला। मुझे लगा तुम दिनभर के थके हो, मामूली दर्द है थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा इसलिए तुम्हारी नींद खराब करना मुझे अच्छा नहीं लगा, दर्द से कराहती रश्मि बोली।

वैभव ने तुरंत अपने डॉक्टर को फ़ोन लगाया, डॉक्टर ने भी देर न करते हुए फौरन अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी। दोनों आनन-फानन में फटाफट अस्पताल पहुँचे और वहाँ मौजूद डॉक्टर को सारी बात बताते हुए आपातकालीन चिकित्सा शुरू करवाई। रास्ते में रश्मि को थोड़ी ब्लीडिंग भी हो गई थी तो डॉक्टर ने गर्भपात की आशंका से कुछ इंजेक्शन देकर तुरंत अल्ट्रासाउंड के लिए भेजा। अल्ट्रासाउंड जाँच में गर्भ में कोई भ्रूण नहीं दिखा परन्तु रक्त जाँच गर्भावस्था की पुष्टि कर रही थी। ऐसे में डॉक्टर ने ओवेरी और फेलोपियन ट्यूब में भ्रूण को ढूँढने की कोशिश की। आखिरकार वही हुआ, जिसका डर अल्ट्रासाउंड करने वाले डॉक्टर को था। एक नहीं दो-दो भ्रूण थे वो भी दोनों फेलोपियन ट्यूब में, जो कि एक दुर्लभ अवस्था है। एक तरफ के ट्यूब में बच्चा होने की स्थिति तो होती है पर दोनों ट्यूब में भ्रूण का मिलना रश्मि के लिए काफी खतरनाक था। रश्मि का रो-रोकर बुरा हाल था। डॉक्टर सब ठीक तो है, रोते हुए रश्मि ने पूछा। डॉक्टर ने भी हिम्मत जुटाकर रश्मि को वास्तविक स्थिति से अवगत कराया। आपकी गर्भावस्था साधारण नहीं दुर्लभ है। मेडिकल साइंस में इसे एक्टोपिक प्रेगनेंसी (अस्थानिक गर्भावस्था) के नाम से जाना जाता है। यह अस्थानिक गर्भावस्था आपके दोनों फ़ेलोपियन ट्यूब में थी, जो कि फट चुकी हैं। इस तरह की गर्भावस्था में भ्रूण को बचाना संभव नहीं होता बल्कि इस गर्भावस्था को तुरंत खत्म किया जाता है। क्योंकि आपके दोनों ट्यूब भी फट चुके हैं तो आपको तो तुरंत आपातकालीन निदान की आवश्यकता है।

एक और बात इसके बाद अब कभी भी प्राकृतिक तरीके से माँ बनना आपके लिए संभव नहीं होगा। सिर्फ गर्भपात की बात होती तो रश्मि संभल भी जाती परन्तु इस खबर ने तो जैसे उस पर वज्रपात ही कर दिया। वो गहरे सदमे में पहुँच गई। ब्लीडिंग बहुत ज्यादा होने के कारण तुरंत उपचार द्वारा जैसे-तैसे रश्मि को तो बचा लिया गया, परन्तु उसके चेहरे की मुसकान हमेशा के लिए छिन गई।

इस दुर्घटना से आहत तो वैभव भी बहुत था परन्तु रश्मि के लिए उसने जैसे-तैसे खुद को हिम्मत बंधा रखी थी। वह जनता था कि यदि वह कमज़ोर पड़ गया तो रश्मि को कभी भी अवसाद से बाहर नहीं ला पाएगा। रश्मि बेसुध सी बस अपने ख्यालों में ही खोई रहती। रह-रहकर उसे वो छह दिन याद आने लगे, जिसमें उसने अपनी पूरी ज़िंदगी जी ली थी। वह बार-बार सोचती कि जब भगवान ने मेरे भाग्य में संतान सुख लिखा ही नहीं था, तो यह छह दिन की खुशी भी क्यों दी। खुद से इन्हीं सवालों के जबाव खोजते हुए उसे एक दिन ख्याल आया कि क्या पता इसके पीछे भी ईश्वर की कोई इच्छा हो। क्या पता वे मेरे दिशाहीन जीवन को एक नई दिशा देना चाहते हों? अब मुझे जीवनभर इस दुःख में नहीं उलझे रहना है, बल्कि अपने जीवन को किसी की भलाई में लगाना है। उसने एक एनजीओ की शुरुआत की, जिसमें वह उन गरीब औरतों के रहने-खाने व इलाज की पूरी व्यवस्था करने लगी जो गरीबी के कारण या ससुराल से निकाली जाने के बाद आर्थिक तंगी से जूझ रही थीं। न केवल गर्भावस्था में बल्कि उसके बाद भी जो महिला वहाँ रहना चाहे, रह सकती थी। उन महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के मकसद से उसने उन्हें कुछ काम सिखा दिए थे, जिससे वे अपनी जीविकोपार्जन में भी सक्षम हो गई थीं। कई महिलाएँ तो शिशु के जन्म के पश्चात् भी कोई और ठिकाना न होने के कारण स्वेच्छा से वहाँ रहने लगी थीं। इस तरह रश्मि को उनके बच्चों के साथ रहने, उन पर अपना वात्सल्य लुटाने का अवसर भी मिल गया। अब एक नहीं वह कई बच्चों की माँ बन चुकी थी और उन मासूमों के मुख से माँ सुनकर उसे सुखद अनुभूति होती थी। इस तरह रश्मि ने अपने छह दिन की खुशी को न केवल अपनी बल्कि कितनी ही माँओं और उनके हँसते-खिलखिलाते बच्चों की आजीवन खुशी में बदल दिया था।

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