सालगिरह  Shwet Kumar Sinha

सालगिरह

सालगिरह किसी भी युगल के लिए एक बड़ा ही यादगार और भावुक दिवस होता है। शादी के चार दशक लग जाने के बाद भी मेरे मन से इसकी महत्ता तनिक भी कम न हुई थी और इसमें तब चार चांद लग गए जब उन्होंने सुबह ही आकर मेरे माथे को चूमकर मुझे जगाया। पर यह खुशी क्षणिक ही साबित हुई।

अभी थोड़ी देर हुए आँख लगी थी कि पतिदेव ने मुझे जगाया और मुस्कुराकर माथे को चूम लिया। शादी के इतने साल बीत गए पर आजतक इन्होंने ऐसा नहीं किया था। फिर अचानक ऐसी क्या बात हुई जो आज इतना प्यार उमड़ रहा है!!

"क्या बात है? बुढ़ापे में यूँ जवानी सूझ रही है आज तुम्हें?" – आँखों को मलते हुए मैंने भी पूछ ही लिया।

मुस्कुराते हुए पतिदेव मेरे करीब आए और धीरे से कानों में कहा – "आज हमदोनों के शादी की चालीसवीं सालगिरह है न! सोचा तुम्हे थोड़ा सरप्राईज दूँ, वो भी अपने अंदाज में! सालगिरह मुबारक हो बीवी साहिबा!"

अब मैं ठहरी थोड़ी पुराने ख्यालों वाली महिला। आजकल की भांति अपनी भावनाओं का इजहार करना नहीं आता मुझे। झेंपते हुए इनकी बाहों से निकलकर मैं बिस्तर से उतरी। इनके चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लिया फिर ड्रेसिंग टेबल के सामने आकर सिंदूर की डिबिया से चुटकी भर सिंदूर निकाल माथे पे लगाने को हाथ आगे बढ़ाया।

पर ये क्या!!! सिंदूर लगाने के लिए अंगुलियाँ अभी मेरी माँग तक पहुँची भी नहीं थी कि सिंदूर की डिबिया नीचे फर्श पर गिर गई और सारा सिंदूर कमरे में बिखर गया।

यह दृश्य देखकर हृदय तार-तार हो गया। बड़बड़ाती हुई अभी खुद को कोस ही रही थी कि किसी ने मुझे जोर से झकझोरा। आँखें खुली तो पाया कि मैं बिस्तर पर पड़ी थी और बेटी मुझे नींद से जगाने की कोशिश कर रही है।

"क्या हुआ माँ? सपने में क्या अनाप-शनाप बड़बड़ा रही थी? किसे कोस रही थी, माँ? चलो उठ जाओ अब!"– बेटी ने कहा।

मैं तो सीधे आसमान से मानो जमीन पर ही आ गिरी।

अपनी माँग में सिंदूर को टटोला तो बेटी की आँखें नम होती दिखी। ऐसा महसूस हुआ जैसे दिल पे किसी ने जोर से पत्थर मारा हो और वो चकनाचूर हो गया। याद आया कि आज हमारे शादी की चालीसवीं सालगिरह थी और कितनी अजीब बात है कि इनके इस दुनिया से गए आज पूरे चालीस दिन होने को आए।

दिल तड़प कर रह गया। समझ में आ गया कि जो कुछ भी देखा वो तो सपना मात्र था और इनसे मिलना अब कभी संभव न होगा।

अब वो तो नहीं हैं पर उनकी ढेर सारी यादें साथ हैं। मन ही मन सपने की बात याद कर सामने दीवार पर टंगी उनकी हार से सजी तस्वीर देख उन्हें सालगिरह का मुबारकबाद दिया और खुद को शांत करने का असफल प्रयत्न करती रही।

वे जहाँ कहीं भी होंगे मेरी बातें उन तक अवश्य पहुँच रहीं होंगी।

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