पथ-प्रेमी (एक सफर अनंत)  VINAY KUMAR PRAJAPATI

पथ-प्रेमी (एक सफर अनंत)

एक पथ प्रेमी का सफर ताउम्र चलता रहता है और यह एक अनंत सफर है जो आख़री साँस से ही संपन्न होता है!

सूरज से पहले उठने कि ज़िद्द आज भी जिन्दा है, चलो आख़िरकार सुबह हो गई, ये सवेरा भी बड़ा शातिर है रोशनी से मिलाने की साजिश कर जाता है। कुछ ऐसी सोच के साथ उसके दिन कि शुरुआत हुई। चारों दिशाओं को जीतने की चाह रखने वाला "संजीत" जो अक्सर कहता है नाम में क्या रखा है इंसान के जन्म होते ही जो मिल जाये वो नाम उतना मायने नहीं रखता मेरे लिए जो नाम मेहनत की धुप में तप के मिलता है।

तभी दरवाजे पर हलचल होती है और ओम जो कि संजीत का पड़ोसी है अंदर आ जाता है। और भाई ऑफिस जाने की तैयारी हो रही है?
संजीत- हाँ यार! ये सफर नहीं पता कहाँ ले जाएगा।
ओम- कोई बात नहीं रास्ते सही होने चहिये सफर कहीं भी ले जाये, चलो ठीक है तुम जाओ मैं भी चलता हूँ।
संजीत इससे पहले कुछ बोलता ओम वहाँ से चला जाता है। मोटर-साइकिल पर सवार संजीत हवाओं से बाते करते हुए अपनी मंजिल कि ओर बढ़ रहा था, मंजिल से तात्पर्य ऑफिस से है अन्यथा पूरा जीवन मंजिल कि तलाश में ही तो चला जाता है। पूरा दिन कार्य में व्यतीत करने के पश्चात एक और सुबह की शाम हो जाती है, सूरज अपनी लालिमा छोड़ते हुए अंधेरे के आगोश में चला जाता है।
शाम 7 बजे ऑफिस से घर जाते हुए संजीत - ओह! फिर भूल गया, आज तो गया मैं वो आज मुझे मार डालेगी।
मोटर -साइकिल को दूसरे मार्ग पर ले जाते हुए संजीत बहुत चिंतित लग रहा था, लेकिन होठों पर एक प्यारी मुस्कान भी थी। चौराहे के एक तरफ गुस्से में, मगर चेहरे पर मासूमियत लिए हुए वो खड़ी थी जो संजीत के दिल के करीब थी।

"रीना" संजीत की प्रिय मित्र के साथ-साथ एक सामाजिक-कार्यकर्ता भी थी जो कि "मेक लाइफ ईज़ी" नाम की संस्था में काम करती थी।

संजीत - माफ़ करना आज फिर इंतजार करा दिया।
रीना- आपका काम ही क्या है, इन्तजार कराना और कुछ तो आता नहीं है।
संजीत - अरे देवी माँ अब शांत भी हो जाओ!
रीना- ठीक है जाने दो और बताओ।
संजीत- लगता है सारी बातें यही पर करने का इरादा हैं।
रीना- नहीं बाबा चलो आज कुछ खास बात करनी है जो मेरे जीवन से जुड़ी है।

दोनों वहाँ से प्रस्थान करते हैं!

कुछ समय बाद संजीत बोलता है, "बोलो रीना कुछ बात करनी थी तुमको।" रीना उदास मन से बोलती है, "मैं जिस NGO में काम करती हूँ उसके वरिष्ठ प्रभारियों ने मुझे इंदौर के कार्यालय में बाल कल्याण विभाग में काम करने का प्रस्ताव दिया है, तो मैं दो दिन में इंदौर जाने वाली हूँ।"

संजीत कुछ पल निशब्द रहता है फिर बोलता है, "यह तो बहुत अच्छी बात है, मैं तो यही चाहता हूँ कि तुम अपने सारे सपने पूरे करो और क्या चाहिए मुझे।" रीना मुस्कुराते हुए बोलती है, "हाँ यही सच है, हम जिसे अपना मानते हैं उसी की खुशी में हमारी खुशी है।"

मुझे भूल तो नहीं जाओगी दूर जाकर, संजीत मंद भाव से बोलता है। रीना बोलती है, "नहीं, ये कोई बात हुई! फ़ासलों से जो कम हो जाए वो दोस्ती नहीं हैं, हम आपको भूल जाएँ इतनी बड़ी हमारी हस्ती नहीं हैं। यकीन ना हो तो दिल से पूछ लेना।"

संजीत यह सब सुन कर मुस्कुरा देता है और दोनों अपने-अपने पथ की ओर चल पड़ते हैं।

संजीत शान्त भाव से अपने पथ पर गीत गुनगुनाते हुए बढ़ रहा था अचानक से उसके सामने एक बूढ़ा व्यक्ति आ जाता है। संजीत किसी तरह अपनी मोटर-साइकिल को नियंत्रित करता है और उसे एक तरफ करके उतरते हुये पूछता है, "अरे बाबा आप ठीक तो हैं ना, चोट तो नहीं ना लगी। बूढ़ा व्यक्ति जब अपना चेहरा ऊपर करता है तो संजीत उसे देखकर चौंक जाता है। वह बूढ़ा व्यक्ति उसके गाँँव का ही व्यक्ति था।

बेटा तुमको कहाँ-कहाँ नहीं तलाशा, तुम अपने गाँँव से किए वादे को भूल तो नहीं गए। संजीत बोलता है, "कौन सा वादा?"

बूढ़ा व्यक्ति - हाँ बेटा कौन सा वादा ! सब को जागृत करके स्वयं सो गए, भूल गए उस वादे को मंजिल के इरादे को, तुम अपनी जमीन, अपनी माँ, अपने गाँँव से किये गए सारे वादों को भूल गए।

संजीत की आँखों में वह दृश्य आ जाता है, जब उसने कुछ प्रण लिया था। तभी वह व्यक्ति संजीत को एक तस्वीर दिखाता है, "देखो बेटा इस तस्वीर में वही वृक्ष है जिसका तुमने 8 साल पहले रोपण किया था।"

वृक्ष को देख कर संजीत की आँखों में आंसू आ जाते हैं! आखिर क्यों भूल गया मैं उस वादे को जो इस वृक्ष को लगाते हुए मैंने किया था, क्या मैं इतना मजबूर था। ये वृक्ष तो अपने वादे के अनुसार बहुत बड़ा हो गया और अब हर राही को छाया और प्राणवायु प्रदान करता है, लेकिन मैं तो अभी भी वहीं हूँ जहाँ था। क्या मैं उस पथ से प्रेम नहीं करता था, यह क्या हो गया मैं नहीं भूल सकता।

संजीत के सोये हुये सपने पुनः जागृत हो जाते हैं, संजीत उस बूढ़े व्यक्ति को गले लगा लेता है। मुझे माफ़ करना मैं भूल गया था उन वादों को जिंदगी के इरादों को, भटक कर फिर वहीं आ गया तोड़ के हर मर्यादा को!

ये वादा आखिर क्या था जिसके पूरा ना हो पाने की वजह से संजीत इतना दुःखी था। रात पूरी तरह अँधेरे और खामोशियों के आगोश में थी, आँखें नम थीं, मन उदास था, गहराईओं में डूब कर भी वह परिंदा आज़ाद था।

संजीत सोच में डूबा था उसे अपना वादा पूरा करना था, उसके गाँव की 70 एकड़ में फैली उस बंजर भूमि में जान डालनी थी जिसे राज्य सरकार भी बंजर घोषित कर चुकी थी गाँव के सरपंच ने वह ज़मीन एक केमिकल फैक्ट्री को सौंपने का फैसला किया था, लेकिन गाँव वालों के प्रयासों के कारण यह कार्य पूरा नहीं हो पाया था और गाँव वालों को जागृत करने का कार्य संजीत ने ही किया था। लेकिन समय के चक्र ने उसके संकल्प को कमज़ोर कर दिया था, संजीत के पथ प्रेमी में फिर से हिम्मत आ गई थी।

वह उसी रात अपने गाँव की ओर निकल पड़ता है। एक पथ प्रेमी का सफर ताउम्र चलता रहता है और यह एक अनंत सफर है जो आखिरी साँस से ही संपन्न होता है!

पथ प्रेमी से पूछ लो क्या है उनकी कहानी, आत्मा तृप्त हो जाएगी सुनके उनकी जुबानी!

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