व्रत  Anupama Ravindra Singh Thakur

व्रत

बचपन से ही बच्चों में धर्म के प्रति रुचि निर्माण की जाए तथा अपनी परंपराओं का आदर करना सिखाया जाए तो वे कभी पथभ्रष्ट नहीं होंगे।

"मैंम कुछ तो कीजिए, आज मेरा चतुर्थी का व्रत है और प्रिंसिपल मैम ने मुझे दोपहर का भोजन लेने के लिए कहा है।" सोनिया हड़बड़ाते हुए सुषमा के पास पहुँची। आँखों में हल्का सा जल तरल रहा था। सुषमा ने पूछा, "पर तुम प्रिंसिपल मैम के पास गई क्यों?"

"वो कोआर्डिनेटर को जब मैंने बताया कि आज मेरा व्रत है और मैं नाश्ता नहीं कर सकती तो उन्होंने मुझे प्रिंसिंपल मैम के कार्यालय में भेज दिया।"

सुषमा ने कुछ कठोर होकर कहा, "जब प्रधानाध्यापिका जी का आदेश है तो तुम्हें भोजन करना ही होगा।"

उम्मीद के साथ सुषमा के पास पहुँची सोनिया ने जब सुषमा के मुँह से भी वही सुना तो वह निराश होकर नीचे बैठ गई और आँखों में आँसू लाकर बोल पड़ी, "मैम तीसरी कक्षा से मैं यह व्रत कर रही हूँ और आज अचानक से व्रत तोड़ने के लिए कह रहे हैं। किसी तरह नाश्ते में मैंने चकमा दिया है, अब सिर्फ दोपहर के भोजन से पीछा छुड़वा दो।"

नौवीं कक्षा में पढ़ रही सोनिया व्रत को लेकर इतनी अधिक गंभीर थी कि वह इस व्रत में फल भी ग्रहण नहीं करती थी। पर आज यह अचानक एक नई मुसीबत आ गई थी। सुषमा की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, वह उसे लेकर फिर से कोआर्डिनेटर मैडम लीना के पास गई।

"लीना मैम सोनिया कक्षा तीसरी से यह व्रत कर रही है, कृपया उसे व्रत करने की अनुमति दीजिए।" सुषमा के बातें सुनकर लीना ने आश्चर्य से कहा, "क्या कक्षा तीसरी से? फिर क्या पाठशाला ने इसकी अनुमति दी थी ?"

सोनिया ने बड़ी मासूमियत से कहा, "नहीं अक्सर यह व्रत छुट्टी के दिन ही आता है, केवल पिछले दो बार से यह कार्य दिवस पर आ रहा है। पिछली बार समन्वयक महोदय मनोज सर ने अनुमति दे दी थी। कई बार मैं स्वयं छुट्टी ले लेती हूँ।"

समन्वयक लीना ने कठोरता से कहा, "पर अब प्रधानाध्यापिका जी ने मना किया है तो तुम्हें भोजन नहीं करने की अनुमति मैं कैसे दे सकती हूँ?" निराश होकर सुषमा एवं सोनिया वहाँ से निकल गए।

सुषमा के मन में आया कि क्यों न फिर से प्रधानाध्यापिका जी से निवेदन किया जाए परंतु वह उनके कठोर स्वभाव को जानती थी, उसे पता था प्रयास व्यर्थ हो जाएगा।
सोनिया की आस्था एवं व्रत करने की जिद्द से वह हतप्रभ थी। वह सच में उसके लिए कुछ करना चाहती थी पर कुछ करने का सीधे अर्थ होता प्रधानाध्यापिका जी के विरुद्ध जाना। अतः उसने सोनिया से कहा, "सोनिया तुम्हारी भक्ति सच्ची है और जहाँ सच्ची भक्ति होती है वहाँ ईश्वर अवश्य अपने भक्तों की मदद करते हैं। अब तुम सब कुछ गणपति बप्पा पर छोड़ दो और निश्चिंत रहो।"

पर सुषमा के इस सुझाव से भी उसे चैन नहीं पड़ा और वह एक अनुभवी अध्यापिका नैना के पास गई और उन्हें अपनी समस्या बताई। नैना मैम ने कहा, "तुम रात में चांद देखकर भोजन तो करने वाली हो, एक समय तो तुम भोजन लोगी ही ना? सो दोपहर में ले लो।" सोनिया ने विह्वल होकर कहा, "मैं चंद्रमा की आरती के बिना अपना व्रत नहीं तोड़ती।" नैना मैम ने तपाक से कहा, "बेटा छोटे बच्चों को इतने कठोर नियमों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है, मेरी बात मानो, आप दोपहर में खा लो।"

सोनिया चुप रही। दोपहर के भोजन का समय हो गया। उसे पता था उसके टेबल की मैंम उसे परोस देगी और खाने ही लगाएगी। सुषमा अपने टेबल पर चली गई, उसे विश्वास था गणपति बप्पा सोनिया की अवश्य उसकी मदद करेंगे। भोजन समाप्त हो गया। भोजन के बाद प्रार्थना बोली गई और सभी कतार में भवन के बाहर निकलने लगे तभी सोनिया दौड़कर सुषमा के निकट आई और खिलखिलकर हँसती हुई बोली, "मैम कमाल हो गया। मेरी टेबल वाले मैम ने मेरी बात मान ली। सभी के सामने उन्होंने मुझे परोसा पर बाद में उन्होंने मुझे दूसरों की प्लेट में रोटी डालने की अनुमति दे दी। कमाल हो गया! मेरा व्रत भी नहीं टूटा।" दिन भर की भूखी सोनिया का चेहरा ऐसे चमक रहा था मानो उसे दुनिया भर की पूंँजी मिल गई हो।

व्रत का अर्थ होता है संयम, संकल्प। सोनिया ने सही आर्थो में व्रत किया था। बच्चों में बचपन से ही अगर ऐसी आस्था और धर्म के प्रति श्रद्धा के भाव हों तो कोई भी बच्चा अधर्म के पथ पर कभी नहीं भटकेगा। सुषमा नतमस्तक थी उस छोटी बच्ची के दृढ़ निश्चयी व्यवहार से।

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