प्यार का इम्तिहान  Lakshmi Agarwal

प्यार का इम्तिहान

विहान का पूरा ध्यान अपने काम पर है और वह जल्द ही अपने सपनों के आकाश को छू लेना चाहता है। इसलिए दिन-रात पूरी लगन और ईमानदारी से अपने काम में जुटा हुआ है। पर उसे क्या पता था कि उसकी दुनिया एकदम बदलने वाली है।

लंदन से एमबीए करने के बाद विहान अपने देश लौट आया। अपने सपनों और कॅरियर के प्रति उच्च महत्त्वाकांक्षी विहान जल्दी ही एक अच्छी नौकरी पा लेना चाहता है। शीघ्र ही उसके मन की इच्छा पूरी होती है और उसे एक बड़ी कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी मिल जाती है। विहान का पूरा ध्यान अपने काम पर है और वह जल्द ही अपने सपनों के आकाश को छू लेना चाहता है। इसलिए दिन-रात पूरी लगन और ईमानदारी से अपने काम में जुटा हुआ है। पर उसे क्या पता था कि उसकी दुनिया एकदम बदलने वाली है। अपने काम के प्रति विहान की निष्ठा को देखते हुए उसकी पदोन्नति हो जाती है। उसके कार्यों में सहायता के लिए उसके साथ एक सहायक की नियुक्ति की जाती है, जिसका नाम है सुरभि।

सौम्य मुसकान तथा सीधे सरल स्वाभाव वाली सुरभि को विहान जब पहली बार देखता है तो देखते ही रह जाता है। पहली ही नजर में वह सुरभि पर दिल हार बैठा है। हमेशा काम पर ध्यान देने वाले विहान के मन में एक हलचल सी उठ गई है। जैसे किसी ने शांत जल में कंकड़ मार दिया हो। अब उसका किसी काम में मन नहीं लगता, दिन-रात वह सुरभि के ही ख्यालों में खोया रहता। उसके इस रवैये का असर उसके काम पर भी पड़ रहा था। ऑफिस में बॉस भी कई बार टोक चुके थे, पर उस पर किसी की बात का कोई असर नहीं हुआ। इसके उलट सुरभि सिर्फ अपने काम से मतलब रखती, वह काम के अलावा किसी से कोई सरोकार न रखती। बल्कि वह तो किसी से बात तक नहीं करती थी। इस कारण ऑफिस के बहुत से लोग उसे अहंकारी भी समझते थे। पर विहान को अंदाजा था कि उसकी इस ख़ामोशी की वजह अहंकार नहीं, कुछ और है। बस वह एक मौके की तलाश में था कि किसी तरह उसे सुरभि से अकेले में बात करने का मौका मिल जाए।

आज सुरभि के पास काम बहुत ज्यादा था, जिसकी वजह से उसे ऑफिस में देर तक रुकना था। आज उसे यह काम निपटाकर ही घर जाने की इजाजत थी। विहान तो बस इसी मौके की तलाश में था। वह भी शाम को सुरभि के साथ ही ऑफिस में रुक गया। ऑफिस में आज सुरभि और विहान के अलावा कोई नहीं था। विहान के जिस प्यार को वह अभी तक अनदेखा करती रही थी, उसकी शीतल फुहारों में भीगने से वह खुद को भी न रोक पाई थी। उसके प्यार की तपिश बहुत पहले ही उस तक पहुँच गई थी, पर अब तक वह अनजान बनी हुई थी। पर आज अकेले में कैसे वह विहान को अपने दिल की बात कहने से रोक पाएगी, इस बात को लेकर उसे काफी घबराहट हो रही थी। काम खत्म होते ही विहान ने उसका हाथ जोर से पकड़ लिया। सुरभि की दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं। विहान सर, हाथ छोड़िए मेरा, यह आप क्या कर रहे हैं, झूठा गुस्सा दिखाते हुए सुरभि ने कहा। सुरभि आज मुझे मत रोको, मैं कबसे अपने दिल की बात तुमसे कहना चाहता था, आज यह मौका मुझे मिला है तो मैं इसे हाथ से जाने नहीं दूँगा, विहान ने सुरभि के सामने अपना प्रणय-निवेदन रखते हुए कहा। सुरभि को विहान की यह छुअन मदहोश कर रही थी। पहली बार किसी की छुअन में उसने पवित्रता महसूस की। वह भी खुद को रोक न पाई और खुद को विहान की बाहों में कैद कर लिया।

विहान को उम्मीद न थी कि जिस सुरभि को वह दीवानों की तरह चाहता था, वह भी उससे प्यार करती है। कुछ देर तक दोनों के बीच मौन पसरा रहा। दोनों एक-दूसरे के आलिंगन में खोये रहे। सुरभि ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाना चाहा तो विहान ने उसे रोक लिया। मत जाओ न सुरभि, आज मैंने अपने दिल का हाल तुम्हारे आगे रखा है। तुम्हारे प्यार की खुशबू को थोड़ा और महसूस करना चाहता हूँ। सुरभि भी कहाँ जाना चाहती थी, पर थोड़ा शरमाते हुए बोली, सर अब मुझे चलना चाहिए। शायद उसके मन में कोई डर भी बैठा था। नहीं सुरभि, आज नहीं। मैं कुछ और देर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ कहते हुए उसने सुरभि का माथा चूम लिया।

सुरभि फिर से सिमटकर उसके आलिंगन में आ गई और बोली जाना तो मैं भी नहीं चाहती। बस यूँ ही पूरी उम्र आपकी बाँहों में गुज़ार देना चाहती हूँ, कहते हुए उसने भी विहान के होंठों पर चुंबन कर दिया। प्यार की मदहोशी में दोनों इस कदर खो गए कि अपनी मर्यादा भी भूल बैठे। विहान के लिए यह सब पहली बार था, पर क्या सुरभि के लिए यह सब नया था। आखिर उसके मन में ऐसा कौन सा डर था, जिसकी वजह से वह सबसे दूरी बनाए रखती थी।

सुरभि के सामने अपने मन की बात रखने के बाद वह काफी अच्छा महसूस कर रहा था और आज ऑफिस आकर काफी चहक भी रहा था, पर यह क्या सुरभि अभी तक क्यों नहीं आई? उसकी तबियत तो ठीक है न या फिर कल रात की वजह से उसके मन में कोई बात तो नहीं। उफ्फ यह मैंने क्या कर दिया। मुझे सुरभि के इतने करीब नहीं जाना चाहिए था। पता नहीं सुरभि मेरे बारे में क्या सोच रही होगी, ऐसे कई ख्याल उसे बेचैन करने करने। उसने कई बार सुरभि को फोन किया पर वह फोन नहीं उठा रही थी। अब विहान को सुरभि की थोड़ी चिंता हुई। सुरभि ठीक तो है न। उसका किसी काम में मन नहीं लगा। उसने ऑफिस से छुट्टी लेकर सुरभि के घर जाने का फैसला किया। जैसे ही डोरबेल बजी सुरभि ने दरवाजा खोला। विहान को सामने देखकर वह बहुत घबरा गई। उसने जल्दी से विहान को वहाँ से चले जाने के लिए कहा, तभी सुरभि के पापा सामने आ गए। अंकल नमस्ते, कहते हुए विहान ने सुरभि के पापा का अभिवादन किया। सुरभि को तो जैसे काटो तो खून नहीं। सुरभि के पापा ने विहान की बात का कोई जबाव नहीं दिया, उल्टा सुरभि पर बरसते हुए बोले, अच्छा, तो यह है वो, जिसकी वजह से तूने मुझे ना कह दिया। इसी के प्यार की वजह से तुझे इतनी हिम्मत मिली।

'मुझे ना कह दिया' मतलब। मैं कुछ समझा नहीं, यह आप क्या कह रहे हैं अंकल? विहान ने आश्चर्य से पूछा। सुरभि ने आपको मेरी वजह से किस चीज के लिए ना कह दिया। मेरे करीब आने और मेरे साथ रात गुज़ारने के लिए। क्या? यह क्या बकवास कर रहे हैं आप अंकल? आप तो सुरभि के पिता हैं न। विहान के आश्चर्य की सीमा न रही। नहीं मैं इसका सगा बाप नहीं हूँ। यह मेरी सौतेली बेटी है, मैंने इसकी माँ की ख़ूबसूरती की वजह से एक बच्ची की माँ होने के बावजूद उससे शादी की। पर यह मनहूस अपने पिता को तो पहले ही खा चुकी थी, बाद में अपनी माँ को भी खा गई। धीरे-धीरे मैं अपनी पत्नी की मौत के गम से निकला, उस समय यह मनहूस 11 - 12 साल की रही होगी। अपनी माँ की मौत के बाद एक रात यह मेरे लिए खाना लेकर आई। मैंने बहुत ज्यादा पी हुई थी, इसकी छुअन से मैं बेकाबू हो उठा और इसे अपनी बाँहों में भर लिया। अपनी बाँहों में भरने के बाद मैं पागल सा हो गया और हमारा रिश्ता भूलकर मैंने इसके साथ एक नया रिश्ता कायम कर लिया। बस फिर क्या था, मुझे इसकी और इसे मेरी आदत हो चुकी है। हर रात यह मेरी इच्छा पूरी करती है और डर और शर्म की वजह से किसी से कुछ नहीं कह पाती। दुनिया के लिए हम बाप-बेटी हैं पर अकेले में.....तुम सब समझ ही गए होंगे न, हाहाहाहा ! कुटिल हँसी लिए सुरभि के पापा ने विहान से पूछा। क्या बकवास है यह सब और सुरभि तुमने मुझे यह सब क्यों नहीं बताया? क्यों कल रात मेरे साथ प्यार का झूठा स्वाँग रचा? विहान ने गुस्से में आगबबूला होकर कहा। विहान, मेरी बात तो सुनो, मैं मजबूर थी, मुझमें सबका विरोध करने की हिम्मत नहीं थी। मेरी कायरता ने इस आदमी को बढ़ावा दिया, मैं मानती हूँ। पर तुम्हारे लिए मेरा प्यार सच्चा था। अपनी इसी मजबूरी के चलते मैं किसी से कोई मतलब नहीं रखती थी। किसी को अपने दिल में नहीं आने देना चाहती थी, पर तुम्हें अपने दिल पर दस्तक देने से रोक न पाई। मैं खुद तुम्हारे प्यार में गिरफ्त हूँ। तुम्हें खो देने के डर से कल रात कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। पर घर आकर मुझे एहसास हुआ कि तुम्हारे लिए यह सब जानना बहुत जरुरी है। पर इस राक्षस को हमारे प्यार की भनक लग गई और इसने मुझे आज घर से बाहर निकलने नहीं दिया। सुबह होते ही मैं फिर इसके बलात्कार का शिकार हुई। लेकिन मुझे तुम्हारे प्यार पर भरोसा था, मैं जानती थी कि तुम मुझे ढूँढ़ते हुए जरूर आओगे। और देखो मेरा भरोसा जीत गया। अब तुम मुझे इस राक्षस की कैद से आजाद करके अपने साथ ले चलो। मैं अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ ही बिताना चाहती हूँ, सुरभि ने बहुत अपनेपन से कहा। क्या कहा, तुम्हें अपने साथ ले चलूँ। तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया। तुम जैसी लड़की के साथ कौन शादी करके अपना घर बसाएगा। तुम्हारे साथ मुझे बदनामी के सिवा मिलेगा ही क्या? विहान ने पूछा। पर विहान तुम तो मुझसे प्यार करते थे, मेरी बाँहों में पूरी उम्र गुज़ार देना चाहते थे। क्या तुम्हारा प्यार इतना कमज़ोर था, जो वक्त के थपेड़ों को झेल ही न पाया। क्या तुम्हें सिर्फ मेरी ख़ूबसूरती से प्यार था, मुझसे नहीं? सुरभि ने सवाल पूछा। मुझे जिस सुरभि से प्यार था, उसे मैं सीधी-सादी पवित्रता की मूरत समझता था, तुम जैसी अपवित्र लड़की की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता। मैंने जिस सुरभि से सच्चा प्यार किया, वो तुम तो बिलकुल नहीं हो सकती। मैं जिस सुरभि से प्यार करता हूँ, उसे अपने सिवा किसी के साथ एक मिनट भी नहीं देख सकता, फिर तुम तो कितने साल से इस आदमी के साथ.......... विहान ने गुस्से में कहा। विहान रुक जाओ, एक बार मेरी बात तो सुनो। इन सबमें मेरी क्या गलती थी। मैं तो खुद हालातों की शिकार हूँ, इस ज़िन्दगी से छुटकारा चाहती हूँ। मेरे प्यार को इस तरह ठुकराकर मत जाओ, सुरभि ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। विहान ने सुरभि की एक न सुनी और वहाँ से चला गया। सुरभि रोती-बिलखती रही।

विहान सबकुछ भुला देना चाहता था इसलिए फिर से अपने काम में रम जाना चाहता था। इधर पैसों की खातिर सुरभि के पिता ने अगले दिन उसे फिर से काम पर जाने के लिए डराया-धमकाया। सुरभि को बेमन से अपने काम पर लौटना ही पड़ा। सुरभि को फिर से अपने सामने देखकर विहान बौखला गया। इसी बौखलाहट में उसने पूरे ऑफिस के सामने सुरभि का सच बयाँ कर दिया और ठहाके मारकर हँसते हुए बोला, यह मैडम चाहती हैं कि मैं इनसे शादी कर लूँ। क्या आप में से कोई भी इन्हें अपना पाएगा। क्या ऐसी चरित्रहीन लड़की को हम सबके बीच रहना चाहिए, सबके सामने सुरभि का अपमान करते हुए विहान ने कहा। सुरभि को विहान का यह रवैया देखकर बहुत हैरानी हुई। उसका दिल टूट चूका था। इस अपमान की पीड़ा उसे सता रही थी, पर वह अपने आत्मसम्मान को दोबारा इस तरह तार-तार नहीं होते देखना चाहती थी। उसने इस बार खुलकर विहान का प्रतिकार किया और समझाया कि उसे कोई हक नहीं बनता कि वह उसके चरित्र पर ऊँगली उठाए। विहान, तुम्हें मुझसे शादी नहीं करनी, मत करो, पर अपना अपमान भी मैं तुम्हें नहीं करने दूँगी। मैंने तुमसे और तुमने मुझसे प्यार किया था, इसलिए तुम्हारे साथ अपना जीवन बिताना चाहती थी। उस राक्षस ने पहले ही मेरा जीवन नरक बना दिया है, तुम्हें अपने आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुँचाने दूँगी। आप सबको लगता है कि विहान की बातों से आहत होकर मैं यह ऑफिस छोड़कर चली जाऊँगी तो ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं अब भी सर उठाकर पूरी लगन से यहाँ काम करूँगी। आप लोगों की हिकारत मुझे मेरे लक्ष्य से नहीं डिगा पाएगी। पहले ही बहुत अन्याय सह चुकी हूँ, अब और नहीं सहूँगी। आज ही उस राक्षस के खिलाफ भी पुलिस में शिकायत दर्ज करूँगी और यदि आपमें से किसी ने मेरे आत्मसम्मान पर कोई चोट पहुँचाने की कोशिश की तो आप लोगों को भी कानूनी भाषा में जबाव दूँगी, गर्व से सर उठाकर सुरभि ने कहा। और हाँ, थैंक यू सो मच विहान सर, आपके खोखले प्यार ने आज मुझे सशक्त जरूर बना दिया। आपकी बातों ने मुझे अन्याय का प्रतिकार करना सिखा दिया, आपके प्यार का एहसान मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगी, सुरभि ने ताना मरते हुए कहा।

ऑफिस से लौटने के बाद सुरभि ने अपने सौतेले पिता के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाकर उसे गिरफ्तार करवा दिया। आज रात उसे बहुत सुकून महसूस हुआ। अगले दिन वह एक नई ताज़गी और ऊर्जा के साथ ऑफिस पहुँची, जहाँ सभी ने बहुत गर्मजोशी से उसका स्वागत किया। विहान फूलों का एक बहुत सुंदर सा गुलदस्ता लेकर उसके सामने आया और सबके सामने उसे गले लगा लिया। सुरभि, मुझे माफ कर देना अगर मेरी किसी बात से तुम्हें ठेस पहुँची हो तो, विहान ने माफी माँगते हुए कहा। तुम्हारा सच जानने के बाद भी मेरा तुम्हारे लिए प्यार काम नहीं हुआ था, बल्कि तुम्हारे लिए परवाह और बढ़ गई थी। तुमने इतने साल जो कुछ झेला, उसे सुनकर ही मेरी रूह काँप उठी तो तुम पर क्या बीती होगी, इसकी हम सब कल्पना भी नहीं कर सकते। मैं तुम्हें उस दर्द और घुटन से आज़ादी दिलाकर तुममें आत्मविश्वास जगाना चाहता था। तुम्हें सुकून में देखना चाहता था, बस इसलिए तुम्हारे आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने का नाटक किया। उस राक्षस को कानून के हवाले करके तुम्हारी तकलीफ तो खत्म नहीं हुई होगी पर तुम्हें कुछ सुकून ज़रूर मिला होगा। जो मेरे जीवन का सुकून है, जिसे देखकर मेरे दिल को करार आता है, भला उसे मैं कैसे बेचैनी में जीने दे सकता था।अगर मैं तुम्हें उसी समय अपना लेता, तो यह हिम्मत और आत्मविश्वास शायद तुम्हारे अंदर कभी न आ पाती, जो कि न सिर्फ तुम्हारे लिए बल्कि हर स्त्री के लिए जरूरी है। उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने का अधिकार किसी को नहीं है, यही बात तुम्हें समझानी थी। बस इसलिए यह सब नाटक किया, हो सके तो मुझे माफ कर देना। विहान ने अपना स्पष्टीकरण देते हुए कहा। ओह्ह विहान, मैंने तुम्हें कितना गलत समझा। तुम्हारे प्यार पर सवाल खड़े किए। तुमने तो मेरा जीवन सँवारने की कोशिश की और मैंने तुम्हें ही क्या-क्या नहीं कह दिया। मेरी इस नादानी के लिए मुझे माफ कर देना, सुरभि ने माफी माँगते हुए कहा। चल पगली, ऐसे रोते नहीं। तेरे-मेरे दरमियाँ माफी और आँसू कहाँ से आ गए। हमारे दरमियान कुछ होगा तो वह है केवल प्यार, प्यार और प्यार। तुम्हारा प्यार ही अब मेरे जीने की वजह होगी और मेरे जीवन का आधार भी। अब बस इन आँसुओं से कहो कि हमेशा के लिए यहाँ से विदा हो जाएँ, क्योंकि इन आँखों में अब सिर्फ मेरा बसेरा होगा। किसी और को यहाँ आने की इजाजत नहीं है, सुरभि को दुलारते हुए विहान ने कहा। तुम्हारा प्यार मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं है। अगर सारे ही पुरुष तुम्हारी तरह हो जाएँ तो स्त्री के जीवन में तो कोई तकलीफ-पीड़ा शेष ही न रह जाए। तुमने तो मेरा जीवन सँवार दिया आज से यह जीवन तुम्हारी ही अमानत है। इस पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार है, तुम जैसे चाहो मेरे जीवन को ढाल सकते हो, कृतज्ञता जाहिर करते हुए सुरभि ने कहा। विहान ने सुरभि को समझाया, नहीं सुरभि, मैंने प्यार किया है, व्यापार नहीं कि तुम्हें प्यार देने के बदले तुम्हारे जीवन पर अपना अधिकार समझ लूँ। तुम्हारा जीवन सिर्फ तुम्हारा है, उसे कैसे निखारना-सँवारना है, वो तुम ही तय करोगी, मैं नहीं। हाँ, तुम्हारा जीवनसाथी बनने के बाद अगर कभी तुम्हें मेरे मार्गदर्शन, सहारे या सहायता की ज़रुरत महसूस हुई तो तुम्हारा हमराही होने के नाते हर कदम पर साथ ज़रूर निभाऊँगा, पर कदम कब, कहाँ, कैसे उठाने हैं, यह तुम ही तय करोगी। किसी भी परिस्थिति में डगमगाने या विचलित होने की जगह अपने कदम मजबूती से आगे बढ़ाओगी, यही मेरी अभिलाषा है।

विहान और सुरभि की शादी को पाँच साल हो गए। अब उनकी एक प्यारी सी बेटी है सुहानी। सुरभि के साथ विहान की यादें हैं पर विहान नहीं। शादी के एक साल बाद ही एक कार एक्सीडेंट में विहान की मौत हो गई। विहान तो चला गया, पर सुरभि के पास अपने प्यार की निशानी सुहानी को छोड़ गया। सुहानी ही सुरभि के जीने का सहारा है। अब सुरभि सुहानी के भविष्य के लिए जीवन में आगे बढ़ रही है। आत्मविश्वास के साथ जीवन की कठिनाईयों का सामना कर रही है और वही आत्मविश्वास सुहानी में भी भर रही है। विहान तो अपने प्यार के इम्तिहान में पास हो गया था अब विहान की दी हुई सीख के सहारे सुरभि भी अपने प्यार के इम्तिहान में न केवल पास होने बल्कि अव्वल आने का प्रयास कर रही है, जहाँ सुहानी का मासूम बचपन उसका साथ निभा रहा है। वह न केवल एक पत्नी बल्कि एक माँ के प्यार के इम्तिहान में भी पूरी तरह से अव्वल आ रही है। उसने ठान लिया है कि चाहे जीवन की राहें कितनी भी पथरीली हों परंतु सुहानी को सुरभि कभी नहीं बनने देगी और यही उसके प्यार का सबसे बड़ा इम्तिहान होगा।

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