प्रेरणा  CHANDRESH PRAGYA VERMA

प्रेरणा

यह कहानी कहीं न कहीं मेरे से जुड़ी हुई और मेरे बेहद करीब है। कभी-कभी किसी के द्वारा कही गई छोटी सी बात आपके जीवन जीने का नज़रिया ही बदल देती है।

आज कितना खूबसूरत दिन था मेरे लिए, मेरे परिवार के लिए, क्योंकि मेरे हाथों में एक नहीं दो-दो खुशियाँ थीं। लोग जिसका इंतज़ार वर्षों करते हैं मुझे वो सब कुछ एकदम से मिल गया था। घर पर हर कोई आनंद से झूम रहा था और सब इतना खुश होते भी क्यों न एक प्यारा सा बेटा और एक बहुत प्यारी सी बेटी, जुड़वां बच्चे जो पैदा हुए थे। मुझे तो अन्दर ही अन्दर डर लग रहा था कि कहीं हमारी इस ख़ुशी को किसी की नज़र न लग जाये परन्तु शायद किसी ने सच ही कहा है ख़ुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकती दो दिन के बाद अचानक ही मेरे बेटे की तबीयत एकदम से बिगड़ गई। मैं उस वक़्त अस्पताल में ही थी, जल्दी-जल्दी बेटे को लेकर डॉक्टर के पास गए उन्होंने उसको तुरंत आईसीयू में भर्ती कर लिया और तुरंत ही उसका इलाज करना शुरू कर दिया। मुझे तो समझ में ही नहीं आया कि अचानक ये क्या हुआ। लगा जैसे किसी ने आसमान से उठाकर मुझे नीचे गिरा दिया हो, एक पल में जैसे खिली-खिली धूप थी चारों ओर और अब लगता है मनो काले-काले बदल घिर आए हों।

मुझे लगा जब ऐसा ही होना था तो मुझे दो-दो खुशियाँ देने की क्या ज़रुरत थी जिसकी वजह से मैंने पूरी गर्भावस्था में तकलीफ उठाई, ये सोचकर की चलो ये परेशानी का समय निकल जायेगा तो आगे अच्छा वक़्त भी तो आएगा लेकिन क्या पता था कि ऐसा भी कुछ हो जायेगा जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी। मेरा बेटा, बेटी से थोड़ा कमज़ोर जरुर था लेकिन अन्दर से बेहद ताकतवर था, बेचारा लगातार तीन दिनों तक जीवन और मृत्यु से संघर्ष करता रहा लेकिन अंत में अपना जीवन हार गया।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ, न मैं खुश हो पा रही थी और ना ही दुःख मना पा रही थी। ऐसा लग रहा था बहुत जोर से चिल्लाओ और रो लो लेकिन जब ऐसा होता तो मुझे मेरी बेटी का चेहरा सामने आ जाता। घरवाले कहते बेटी को देखो इसकी क्या गलती है, इसको क्यों सज़ा दे रही हो, पर क्या करूँ हूँ तो माँ ही ना जब एक बार बच्चे का मुँह देख लिया तो मोह नहीं जा पा रहा था, भले ही मेरी गोदी में वो दो दिन ही रहा पर मेरे साथ तो नौं महीने रहा ही ना, एक एहसास था जो लग रहा था अब नहीं है। पर जो काम हमारे हाथ में नहीं होते उसके लिए हम कर भी क्या सकते हैं। तभी अचानक मेरे बगल वाले बेड पर दाखिल एक मेरे से भी छोटी उम्र की महिला की रोने की ज़ोर-ज़ोर से आवाजें आने लगीं उसके भी अभी एक दिन पहले ही बच्चा हुआ था जिसकी आज सुबह ही किसी कारण से मृत्यु हो गई थी, मैं तो पहले से ही इतनी दुखी थी, वाबजूद उसके मुझसे उसका रोना देखा नहीं गया, मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं उसको क्या सांत्वना दूँ, क्या ऐसा बोलूँ की उसका दुःख कुछ हल्का हो जाए, पर मेरी हिम्मत ही नहीं हुई। जब और महिलाएँ उसको समझा रही थीं, उसे सांत्वना दे रही थीं और मेरे बारे में भी बता रही थीं कि इन्होने भी अपना बच्चा खोया है तभी अचानक से वह बोल पड़ी “एक तो इनके पास है ना, मैं तो घर खाली हाथ ही जाऊँगी ना” और बहुत ज़ोर से रोने लगी। उसके यह शब्द सुनते ही मुझे लगा हाँ वो बोल तो सही ही रही है, मेरी गोद में तो मेरी प्यारी और मासूम सी बेटी है पर वो वाकई में घर खाली हाथ ही जाएगी। उसके बोले हुए वो शब्द मेरे अंतर्मन को झकझोर कर रख गए कि मेरी तकलीफ और दुःख उस महिला से ज्यादा तो नहीं है ना, क्योंकि मेरे पास मेरी एक बेटी भी तो है, कहीं न कहीं उसके अनजाने में कहे गए शब्दों ने न जाने मुझे कैसे प्रेरणा दी कि मैं अपना दुःख उसके आगे थोड़ी देर के लिए भूल गई। उसी पल मैंने निश्चय किया कि जो भी हुआ उसका दुःख तो मुझे आजीवन रहेगा लेकिन उसकी छाया मैं अपनी बेटी पर कभी भी नहीं पड़ने दूँगी, उसे वो सारी खुशियाँ दूँगी जिसकी वो हक़दार है। अनजाने में मिली उस प्रेरणा और अपनी सकारात्मक सोच को बदलकर मैंने अपनी बेटी का स्वागत इस दुनिया में भरपूर प्यार देकर किया और मन ही मन उस महिला के कहे गए शब्दों का मैंने धन्यवाद दिया कि किसी के अनजाने में बोले गए शब्दों से आप अपनी सकारात्मक समझ द्वारा जीवन जीने की पूरी दिशा को ही बदल सकते हो।

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