नशा मुक्ति  रवि रंजन गोस्वामी

नशा मुक्ति

माता पिता को अपने बेटे से असीम उम्मीदें थीं लेकिन कुसंग मे पड़कर वह नशा करने लगता है और नशे का आदी हो जाता है । इस परिवार पर क्या गुजरती है । कैसे क्या समाधान होता है ? कृपया कहानी पढ़ें ।

रमेश अपनी बैठक में सोफासेट पर बैठ कर सुबह की चाय पी रहा था और खिड़की से तेज़ धूप आ रही थी। ताज़ी बनी मसाला चाय की सुगंध हवा में भर गयी थी, और लिविंग रूम से आने वाली धीमी गुनगुनाहट की आवाज़ उसके मन को प्रफुल्लित कर रही थी। उसकी पत्नी प्रभा अपनी दैनिक दिनचर्या में व्यस्त थी, घर की सफ़ाई कर रही थी और अपने दो बच्चों, सुधीर और सरिता के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी।

रमेश अपनी पत्नी प्रभा और दो बच्चों सुधीर और सरिता के साथ संतुष्ट जीवन जी रहा था। दोनों बच्चे पढ़ाई में अच्छे थे। शादी के 10 साल बाद पहली संतान के रूप में बेटा सुधीर पैदा हुआ था। सरिता अपने भाई से तीन साल छोटी थी। लंबे इंतजार और प्रार्थनाओं के बाद सुधीर का जन्म हुआ था। वह अपने माता-पिता के लिए एक विशेष बच्चा था। हालाँकि वे जानबूझ कर बच्चों में भेद नहीं करते थे। सरिता को लगता था कि उसकी माँ उसके भाई के प्रति थोड़ी पक्षपाती है। वह भी अपने भाई से बहुत प्यार करती थी इसलिए उसे अपनी माँ द्वारा भाई को दी जाने वाली छोटी-मोटी प्राथमिकताओं का बुरा नहीं लगता था। हालाँकि, वह इसके लिए अपनी माँ को चिढ़ाया करती थी। जब भी माँ सरिता और सुधीर को एक साथ खाना परोसती तो सरिता शिकायत करती, "देखो माँ! तुमने भाई के चावल में ज़्यादा घी डाल दिया है।" माँ हँसती और थोड़ा घी उसे भी दे देती।

रमेश और प्रभा की अपने बेटे को लेकर बड़ी योजनाएँ और उम्मीदें थीं। वे सुधीर को आईआईटी से इंजीनियर बनाना चाहते थे। वे सरिता की शिक्षा में भी रुचि रखते थे लेकिन उन्हें उसकी शादी की अधिक चिंता थी जब वह विवाह योग्य उम्र तक पहुँच जाएगी। सरिता के मामले में करियर और शिक्षा गौण थे। हालाँकि, उन्होंने कभी भी सरिता को पढ़ाई से हतोत्साहित नहीं किया था।

उनका घर गर्मजोशी और प्यार से भरा हुआ था, जो बाहरी दुनिया की अराजकता से अप्रभावित था। रमेश ने कड़ी मेहनत से उसके परिवार को एक आरामदायक और संतुष्ट जीवन प्रदान किया था। यही उसका उद्देश्य था, यही उसकी प्रेरक शक्ति थी। जब रमेश नाश्ते की मेज पर सुधीर और सरिता को हँसी-मज़ाक करते देखता, उसे बड़ा नाज़ महसूस होता था। वयस्कता की दहलीज पर पहुँचकर सुधीर एक सुंदर और बुद्धिमान युवक बन गया था। उसकी छोटी बहन, सरिता, एक जीवंत और जिज्ञासु किशोरी थी, जो अपने आस-पास की दुनिया का पता लगाने के लिए उत्सुक थी।

धीरे-धीरे एक लम्बा समय बीत गया। सुधीर अब बीएससी में पढ़ रहा था और इंजीनियरिंग के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था। रमेश ने मोटी फीस देकर उसे शहर के सबसे अच्छे कोचिंग सेंटर में दाखिला दिलाया था।

वहाँ बाहरी छात्रों के लिए एक छात्रावास भी था। सुधीर की दोस्ती हॉस्टल में रहने वाले कुछ छात्रों से हो गई। सुधीर ने लड़कों के साथ छात्रावास देखा । छात्रावास में रहने वाले छात्रों की जीवन शैली देख कर उसे लगा वे ज्यादा स्वतंत्र हैं। उसने अपने आप से तुलना की तो उसे लगा वह अभी भी अपने निर्णय खुद नहीं लेता है। सिनेमा देखने जाना हो तो भी माँ या पापा की आज्ञा लेना पड़ती थी। या कम से कम बता के जाना होता था।

कुछ दिन बाद उनमें से एक रघु का जन्मदिन था। छात्रावास समूह का नेता सुकुमार था। जन्मदिन से एक दिन पहले उसने सुधीर से कहा, “कल हम हॉस्टल में मेरे कमरे पर रघु का जन्मदिन मनाएँगे। रघु पार्टी दे रहा है। तुम्हें आना ही होगा।"

अगले दिन सुधीर ने अपनी माँ से कहा कि वह कोचिंग से देर से वापस आएगा। उस वक्त रमेश वहाँ मौजूद नहीं था।

पार्टी के स्वरूप के बारे में सुधीर को कोई अंदाज़ा नहीं था। कोचिंग क्लास के बाद वह सुकुमार के कमरे पर छात्रावास के छात्रसमूह में शामिल हो गया। कमरे में 10 लोग थे। इन दस लोगों में से दो लड़कियाँ थीं। इस अवसर के लिए कमरा तैयार किया गया था। बीच में कुर्सियों से घिरी एक गोल सेंट्रल टेबल रखी हुई थी। मेज पर केक, पेय पदार्थ और अन्य खाद्य पदार्थ रखे हुए थे। दोस्तों ने रघु को केक काटने के लिए कहा। रघु ने मोमबत्तियाँ बुझाईं और केक काटा। सभी ने तालियाँ बजाईं और समवेत स्वर में जन्मदिन का गीत गाया। फिर वे खाने-पीने का आनंद लेने लगे।

पेय दो प्रकार के थे, काले और सफेद। सुधीर ने एक कोक जैसा ब्लैक ड्रिंक लिया। लेकिन जैसे ही वह उसे अपने मुँह के पास लाया, उसे उसमें शराब की गंध आई।

उसने पूछा, "यह कौन सा पेय है?"

सुकुमार ने कहा , "यह रम मिलाया हुआ कोका कोला है।"

सुधीर ने गिलास मेज पर रखते हुए कहा, “मैं इसे नहीं पी सकता।”

सुकुमार ने कहा, "यार समझा करो, हम छात्र हैं। हम महँगी स्कॉच जैसी शराब नहीं खरीद सकते। यह सबसे अच्छा पेय है।"

सुधीर ने झिझकते हुए कहा, "‘यह बात नहीं है. मैं शराब नहीं पीता हूँ।"

रघु ने कहा, "हम भी किसी खास मौके को छोड़कर शराब नहीं पीते।"

एक लड़की, जिसका नाम रोज़ी था, ने कहा, "कोई बात नहीं। आप जिन ले सकते हैं, मीरा और मैं जिन ले रहे हैं।"

सुकुमार ने ताना मारा, "क्या तुम लड़कियों से भी बदतर हो? जिन को पियो प्रिय, खासकर जब रोजी कह रही हो।''

रोज़ी ने जिन का एक गिलास सुधीर को दिया। सुधीर उसे मना नहीं कर सका।

शुरूआती झिझक के बाद सुधीर ने ड्रिंक और पार्टी का आनंद लेना शुरू कर दिया।

जब वे पार्टी ख़त्म करके जाने के लिए तैयार हुए, तो सुधीर को लगा कि उसके पैर उसकी इच्छा के मुताबिक नहीं चल रहे हैं। चलते समय वह लड़खड़ाता था।

सुकुमार ने उससे पूछा, "सुधीर, क्या तुम ठीक हो?"

सुधीर ने जवाब दिया, "मैं ठीक हूँ।" वह नहीं चाहता था कि उसे एक कमजोर व्यक्ति के रूप में देखा जाए।

सुधीर हॉस्टल से बाहर आया। बाहर की ताज़ी हवा अच्छी लग रही थी। घर जाने के लिए उसने ऑटो रिक्शा लिया। घर पहुँच कर उसने ऑटो के पैसे दिये और दरवाजे की घंटी बजायी।

घर में सभी उसका इंतजार कर रहे थे। क्योंकि वह पहले कभी इतनी रात तक घर के बाहर नहीं रहा था। यद्यपि वह कहकर गया था कि वह देर से आएगा किन्तु किसी ने इतने विलंब का अनुमान नहीं किया था।

प्रभा ने दरवाजा खोला। सुधीर मुस्कुराने की कोशिश करता हुआ घर के अंदर दाखिल हुआ उसके मुँह से आती हुई गंध और उसकी चाल उसकी कहानी बताने के लिए काफी थी। रमेश और प्रभा को बड़ा झटका लगा। उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करें। सरिता भी सकते में थी। सुधीर चुपचाप सबके सामने से अपने कमरे में चला गया।

रमेश, प्रभा और सरिता काफी देर तक चिंता और चिंतन करते रहे। जो हुआ वो क्यों और कैसे हुआ? रमेश, चिंता किये बिना नहीं रह सका। उन्हें अपने बेटे के गलत संगत में फँसने और बिगड़ जाने की संभावना का डर था।

रमेश सबसे अधिक चिंतित और गुस्से से भरा था। रमेश ने प्रभा से कहा, "उससे पूछो कहाँ गया था ? पीना कब से शुरू किया? और क्यों ?"

प्रभा ने कहा, "अभी उसे सोने देते हैं। सुबह पूछ लेना।"

सरिता ने मम्मी पापा को तसल्ली दी। उसने कहा, "मुझे लगता है लड़कों की कोई पार्टी हुई होगी वहाँ किसी ने भाई को धोके से वाइन पीला दी होगी।"

प्रभा ने कहा, "भगवान जाने क्या हुआ। पहली बार लड़के को इस तरह देख रही हूँ।"

फिर उसने सरिता से कहा, "बहुत रात हो गई। तुम लोग सो जाओ। मैं थोड़ा किचिन साफ करके सोऊँगी।"

चिंता में डूबे विचार करते हुए समय का भान ही नहीं था। सरिता ने दीवार घड़ी की ओर देखा तो बारह बजा रही थी। वह उठकर सोने चली गई। रमेश भी उठकर बेडरूम में चले गये। प्रभा किचिन में चली गई।

सुधीर को लेकर अत्यधिक सोचने और चिंतित होने के कारण रमेश को नींद नहीं आई। वह बिस्तर पर करवटें बदलता रहा। प्रभा रसोई का काम निबटा कर आधा घंटे बाद अपने बेडरूम में आई तब उसने रमेश को जागा हुआ पाया। सामान्यतः जब प्रभा को घर के कामकाज करते हुए देर हो जाती थी और रमेश को जब नींद नहीं आती तो वह कुछ पढ़ने लगता था। वह पढ़ नहीं रहा था।

प्रभा अपने पति की चिंता को भाँपते हुए सौम्य मुस्कान के साथ उनके पास पहुँची और बगल में लेट गई। प्रभा कम चिंतित नहीं थी फिर भी उसने रमेश को सांत्वना देते हुए कहा, "आप अधिक चिंता न करे, हम सुधीर को प्यार से समझाएँगे। वह समझ जायेगा। इस उम्र में भूल चूक हो जाती है।"

रमेश ने कहा, "तुम शायद ठीक कहती हो।" फिर उसने बेड स्विच दबा कर कमरे की लाइट बंद कर दी। वे दोनों सो गये।

सुधीर सुबह जागा तो उसको सर में भारीपन लगा। रात को घर पहुँचने का दृश्य उसकी आखों के सामने आ गया। घर वालों के हतप्रद चेहरे याद आ गए। अब उसे अपने कमरे के बाहर जाने का साहस नहीं हो रहा था। वह यह सोचता हुआ लेटा रहा कि पापा को कल रात के अपने व्यवहार के बारे में क्या कहेगा।

प्रभा ने सरिता से कहा, "सुधीर को जगा दे। कालेज के लिए देर हो जाएगी।"

सरिता सुधीर के कमरे में आई तो वह पहले ही जागा हुआ था। सरिता ने कहा, "भाई, उठना नहीं है? आज कॉलेज नहीं है क्या?"

सुधीर तुरंत उठके बैठ गया।

उसने सरिता से पूछा, "पापा मम्मी गुस्सा हैं क्या?"

सरिता ने कहा, "चिंतित तो जरूर हैं।"

'कल एक दोस्त के जन्मदिन की पार्टी थी।" उसने सफाई देते हुए कहा।

सरिता ने कहा, "तुम ड्रिंक तो नहीं करते थे।"

सुधीर ने कहा, "सभी ने थोड़ा-थोड़ा ड्रिंक किया था।"

सरिता ने कहा, "तुमसे चला भी नहीं जा रहा था।"

सुधीर ने कहा, "मुझे अंदाजा नहीं था। शायद कुछ ज्यादा हो गयी थी।"

सरिता ने कहा, "तुमको नहीं पीना चाहिए।"

सुधीर चुप रहा।

सरिता बोली, "मैं माँ को बताती हूँ तुम जाग गए हो । वह तुम्हारा भी नाश्ता लगा देगी।"

प्रभा और रमेश ने आपस में मशविरा करके निर्णय किया वे सुधीर को अभी कुछ नहीं कहेंगे। वे उसे शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे। उन्हें यकीन था कि सुधीर अपनी गलती का खुद अहसास करेगा।

लेकिन सुधीर को चस्का लग गया था। हॉस्टल के कुछ शौकीन छात्रों के साथ उसकी दोस्ती हो गई। जब वे पार्टी करते सुधीर भी उसमें शामिल होता था। अब वह सावधानी से पीता था कि घर पहुँचने के पहले वह सामान्य हो जाए। पार्टी से लौट कर वह प्रभा और रमेश से दूरी बनाए रखता था। सरिता को उसकी गतिविधियाँ पता थीं। लेकिन उसने उसे समझा दिया था। उसकी उम्र के उसके साथ के लड़कों के लिए ड्रिंक करना एक चलन है।

वो अपने गुट में पिछड़ा नहीं रहना चाहता था। सरिता उसे समझती लेकिन उसकी डांट न पड़े वह किसी को बताती नहीं।

कुछ शंका प्रभा के दिमाग में भी आई थी। एक दिन कोचिंग से लौटकर सुधीर सीधा अपने कमरे में जाकर सो गया। उसने अपना पसंदीदा टीवी कार्यक्रम कौन बनेगा करोड़ पति भो छोड़ दिया। उसके बाद वह उठा तो प्रभा ने पूछ लिया, "आज कोचिंग में कोई पार्टी थी क्या ?"

सुधीर ने जवाब दिया, "नहीं तो।"

प्रभा ने कहा, "तुम सोते रहे। खाना भी अभी तक नहीं खाया इसलिए मैंने सोचा शायद बाहर से कुछ खा के आया होगा।"

सुधीर ने कहा, "नहीं माँ। थक गया था। अब मुझे भूख लग रही है। खाना दे दो।"

प्रभा ने खाना परोस दिया। खाना खाकर फिर वह सोने चला गया।

सुधीर ने कभी सोचा नहीं था कि वह शराबी बन जाएगा। लेकिन हकीकत में उसे शराब की लत लग चुकी थी। अब वह सिर्फ़ पार्टी में ही नहीं बल्कि अकेले में भी पी सकता था। वह चोरी छुपे शराब की छोटी बोतल खरीद कर लाता और रात को सब के सोने के बाद पीता।

प्रभा को एक दिन सफाई करते हुए स्टोर रूम में कुछ ब्रांडी की खाली बोतलें मिली। वह समझ गई सुधीर ही लाकर पिया होगा। रमेश तो कोई शौक नहीं करते थे। वह परेशान हो गई। लेकिन सुधीर से सीधे पूछने के बजाय उसे बुलाकर कहा, ''सुधीर, मैंने स्टोर रूम साफ कर दिया है। कुछ रद्दी समान एक कोने में रखा है। रद्दी वाले को देने से पहले देख लेना तेरे काम की कोई चीज उसमें न हो।"

सुधीर धक से रह गया। उसे याद आया उसने कुछ खाली बोतलें स्टोर रूम में छुपा के रखी थीं कि बाद में छुपाकर घर से बाहर कर देगा।

फिर संयत हो कर सुधीर ने कहा, "ठीक है।"

वह स्टोर रूम में चला गया। उसने देखा पुराने अखबार,किताबें, कुछ टूटे प्लास्टिक के मग एक ओर रखे थे। उसकी बोतलें वहीं रखी थीं जहाँ उसने छुपायी थीं। उसने चैन की साँस ली। उन बोतलों को अपने पैंट की जेबों में रख कर वह बाहर ले गया और सार्वजनिक कूड़ेदान में फेक दीं। इस तरह वह घर वालों से छुपाकर पीने लगा था ।

वह पढ़ाई में अच्छा था। सबको उम्मीद थी वह आईआईटी में प्रवेश पा लेगा। किन्तु उसका स्वयं का आत्मबल क्षीण था। उसका अधिकतर ध्यान शराब की जुगाड़ में लगता था। पढ़ाई पर फोकस कम हो गया था।

जेईई का परिणाम आया तो उसकी रैंक इतनी पीछे थी कि किसी अच्छे इन्जीनियरिंग कालेज में दाखिला मिलना असंभव हो गया था। निराशा और कमजोरी के क्षणों में उसे नशे की तलब हुई। वह उस रात फिर लड़खड़ाता हुआ घर पहुँचा। अब रमेश का अपने क्रोध पर नियंत्रण न रहा। उन्हें चीखते चिल्लाते कभी किसी ने नहीं देखा था। उस दिन घर के बाहर ही वे सुधीर पर बरस पड़े। बहुत देर तक वे सुधीर को डाँटते रहे। उन्होने इस बात की परवाह नहीं की कि पड़ोसी भी घरों से बाहर आये थे। एक तमाशा सा हो गया था । सुधीर ने कुछ सुना या उनकी बात का क्या असर हुआ कोई नहीं बता सकता था । वह पूरा समय सिर झुकाये हुए हिलता डुलता खड़ा रहा था। वह जवाब देने कि स्थिति में नहीं था।

प्रभा ने किसी तरह रामेश को शांत किया। सरिता सुधीर का हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले गई और उसे उसके कमरे में छोड़ आई।

सुधीर नशे में धुत्त सोता रहा। रमेश, प्रभा और सरिता बैठक में देर तक सोचते रहे कि आखिर सुधीर को कैसे सही रास्ते पे लाया जाए।

प्रभा ने रमेश और सरिता को सांत्वना दी। किन्तु रमेश ने उससे कहा, "अब अपने बेटे का सामना करने का समय आ गया है। मैं उससे बात करूँगा। अगली शाम उन्होंने उसे अपने पास बिठाया, उनकी आवाज़ शांत लेकिन चिंता से भरी हुई थी। "सुधीर, हमने हाल ही में तुम्हारे व्यवहार में बदलाव देखा है", रमेश ने कहा, उसकी आवाज़ नपी-तुली थी। "हम समझना चाहते हैं कि आपको क्या परेशानी है।" सुधीर की नज़रें अपने माता-पिता के बीच घूम गयीं, उसके भाव शांत हो गए। उसने महसूस किया कि उनकी उम्मीदों का बोझ उस पर पड़ रहा है, उनके निराश होने का डर उसके दिल में घर कर रहा है।

किसी तरह उसने उन्हें बताया "मैं प्रवेश परीक्षा में फेल हो गया हूँ और मैं इंजीनियरिंग नहीं पढ़ना चाहता।" उसकी आवाज निराशा से भरी हुई थी। रमेश और प्रभा ने एक-दूसरे को देखा, उनकी चिंता और गहरी हो गई। वे अपने बेटे को जीवन में सफल होते देखना चाहते थे। इसके बाद के दिन बहस और तनाव से भरे हुए थे। सुधीर का नशा बढ़ता गया, जिससे उसके माता-पिता निराशा के कगार पर पहुँच गये। वे एक-दूसरे के दृष्टिकोण को ठीक से नहीं समझ पा रहे थे। रमेश को लगता सुधीर का भला उनकी बात मानने में है। सुधीर को लगता पापा अपनी पसंद उस पर थोप रहे हैं।

रमेश को ज्ञात हुआ सुधीर ड्रूग भी लेने लगा था । यह जानकर वह असहाय महसूस कर रहा था। उसका बेटा सुधीर, धीरे-धीरे नशे का आदी होता जा रहा था और रमेश को पता नहीं था कि वह उसकी मदद कैसे करे। उसने सुधीर की मदद करने के लिए वह सब कुछ करने की कोशिश की जो वह सोच सकता था, कभी डांटा कभी प्यार से समझाया। लेकिन कोई स्थायी लाभ नहीं हुआ। सुधीर कभी नशा न करने का वादा भी करता तो भी वह एक या दो दिन से अधिक नहीं निभा पाता था ।

आख़िरकार, आखिरी प्रयास में, रमेश ने सुधीर को एक नशा मुक्ति केंद्र में ले जाने का फैसला किया। यह केंद्र नशीली दवाओं की लत के इलाज में अपनी सफलता के लिए प्रसिद्ध था और रमेश ने इसके बारे में सकारात्मक बातें सुनी थीं। वह सुधीर को केंद्र में ले गया।

वहाँ का वातावरण देख कर उसकी उम्मीद जागी। केंद्र के कर्मचारी मिलनसार और मददगार थे, और रमेश को थोड़ी राहत महसूस हुई कि आखिरकार उसने अपने बेटे की मदद के लिए कुछ किया है। उसे सुधीर को वहीं छोड़ना पड़ा, लेकिन उसने जितनी बार संभव हो सके मिलने का वादा किया।

इसके बाद के सप्ताह रमेश के लिए कठिन थे। वह चिंता और ग्लानि से भर गया। लेकिन, जैसे-जैसे समय बीतता गया, उन्हें सुधीर में बदलाव नजर आने लगा। वह धीरे-धीरे बेहतर हो रहा था।

जब अंततः सुधीर को केंद्र से छुट्टी मिल गई, तो रमेश खुशी से भर गया। उनका बेटा फिर से स्वस्थ और खुश था, और रमेश केंद्र द्वारा दी गई मदद के लिए आभारी था । उन्होंने सुधीर की मदद करने के लिए कर्मचारियों को उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण के लिए धन्यवाद दिया।

सुधीर नशा मुक्त और स्वस्थ होकर घर आ गया था ।

रमेश के घर की खुशियाँ लौट आयीं थीं।

अपने विचार साझा करें


  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com