'खुशियों' का डिब्बा..  Rakhi Jain

'खुशियों' का डिब्बा..

किसी भी रिश्ते की नींव सिर्फ प्यार और विश्वास से नहीं अपितु आपसी समझदारी भी होती है। विवाह एक ऐसा रिश्ता है जहाँ आप अपने साथी को चुन पाते हैं। आप उसे उसकी सारी कमियों और अच्छाइओं के साथ अपनाते हैं, फिर भी जीवन की गाड़ी चलते-चलते कई बार हिचकोले खाती है! उस वक़्त आवश्यकता होती है सहनशीलता से समय को निकाल लेने की! ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत करती एक कहानी!

मुकुल और उसकी पत्नी मैत्री को अपने सारे सुख-दुःख आपस में साझा करते 50 साल बीत गए थे। मुकुंद ने मैत्री से शायद ही कभी कुछ छिपाया हो। मैत्री ने भी अपने पति से सिवाय एक लकड़ी के डिब्बे के सब कुछ साझा किया था। मुकुल ने कई बार उस डिब्बे के बारे में जानने की कोशिश की थी लेकिन हर बार मैत्री मना कर देती थी...लेकिन एक दिन जब मुकुल ने मना करने का कारण ही पूछ लिया तो मैत्री ने अपने पति से वादा किया कि सही समय आने पर वह खुद उसे डब्बे के बारे में बता देगी लेकिन तब तक वह कभी भी उस डिब्बे के बारे में उससे कुछ नहीं पूछेगा और ना ही कभी उसे खोलेगा।

उसके बाद मुकुल ने भी कभी पत्नी से उस डिब्बे के बारे में बात नहीं की। मैत्री की तबीयत अकसर खराब रहती थी। एक दिन उसकी तबीयत काफी बिगड़ गई और उसे लगने लगा कि अब उसका ज्यादा जीवन नहीं बचा है। तब उसने पति से अलमारी से डिब्बा निकाल कर लाने को कहा...मुकुल पत्नी के पास डिब्बा लेकर आया तो मैत्री ने उसे खोलने को कहा। मुकुल ने डिब्बा खोला तो देखा कि उसके अंदर हाथ से बनी हुई दो गुड़िया और बहुत सारे पैसे रखे हैं। उसने हैरान होते हुए उन चीजों के बारे में पत्नी से पूछा। मैत्री ने बताते हुए कहा, "जब हमारी शादी हुई तब मेरी दादी ने विदा होते समय मुझसे कहा था कि सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कभी तकरार मत करना। जब भी तुम्हे अपने पति पर गुस्सा आए तो अपने हाथों से एक गुड़िया बनाना।"

यह सुनकर मुकुल की आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। उसे इस बात की इतनी ख़ुशी हो रही थी कि 50 साल के सुखमय वैवाहित जीवन में उसकी पत्नी को सिर्फ दो बार ही उस पर गुस्सा आया था। फिर खुद पर नियन्त्रण करते हुए वो बोला, "मैत्री, गुड़ियों के बारे में तो तुमने बता दिया अब ये भी बता दो कि इतने ढेर सारे रूपये तुम्हारे पास कहाँ से आये?" मैत्री ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "वो तो मैंने, इतने सालों में, गुड़िया बेचकर जमा किये हैं।" यह सुनकर मुकुल का मुँह खुला का खुला रह गया...वह यह सोचने लगा कि इतने सालों में उसने मैत्री को इतनी बार गुस्सा दिलाया था कि इतनी गुड़िया बन गयीं जिन्हें बेच मैत्री ने इतने पैसे कमा लिए।

वास्तव में पत्नियाँ या महिलाएँ होती ही ऐसी हैं जो अपने जीवनसाथी व परिवार की खुशी के लिए ना जाने कितनी ही इच्छाओं और चीजों का बलिदान देती हैं। इसके साथ ही सुख शांति बनाए रखने के लिए वह कितनी ही गलतियों को नज़रअंदाज़ कर परिवार को जोड़े रखती हैं।

अपने विचार साझा करें


  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com