पूरब भैया  DEVENDRA PRATAP VERMA

पूरब भैया

नेहा ने आकाश को समझाने की कोशिश की पर आकाश को कोई फर्क नहीं पड़ा। कोई बदलाव नहीं, कॉलेज के पहले दिन से आखिरी दिन तक बिलकुल वैसा ही। जब भी उसे कोई बात अच्छी नहीं लगती उसके ‘पूरब भैया’ बीच में आ जाते और सारा मजा किरकिरा हो जाता। हमने कई बार कोशिश की पूरब भैया से मिलने की पर आकाश...कोई न कोई बहाना बना देता।

जब मैंने कह दिया कि मुझे ये नहीं पसंद है तो बार-बार तुम लोग क्यों जिद करते हो, आकाश ने ग्लास को टेबल पर सरकाते हुए कहा। आज आखिरी दिन है इस हॉस्टल में फिर पता नहीं हम लोग कहाँ होंगे, मिल पाएँगे भी या नहीं, आज तो पी ले हमारे लिए, बस एक पैग और इस दिन को यादगार बना दे। देख विशाल भी नहीं पीता था लेकिन आज उसने पी.. हमारी खातिर.. तू क्यों इतना भाव खा रहा है, और कौन सा पहाड़ टूट जाएगा अगर पी लेगा। चल आँख बंद करके पी जा एक घूंट में। यह कहकर शेखर ने दोबारा ग्लास आकाश की तरफ सरका दिया। नहीं पीना मुझे मैंने कहा न, आकाश ने गुस्से में ग्लास को फर्श पर पटक दिया। मैं नहीं पी सकता.. मुझे नहीं पीना चाहिए... मैंने पूरब भैया से वादा किया है मैं कभी नहीं पीऊँगा। अरे यार … फिर से पूरब भैया .. हिमांशु बड़बड़ाया। अब तेरे पूरब भैया यहाँ कहाँ हैं जो तू डर रहा है, और कब तक उनके डर से जियेगा। देख भाई ये तेरी ज़िन्दगी है तू इसे जैसे चाहे जी सकता है, ये पूरब भैया का डर निकाल दे नहीं तो ऐसे ही रोता रहेगा और एक दिन रोते-रोते चला जाएगा, मन मे मलाल लिए कि काश थोड़ी सी हिम्मत करता तो ज़िन्दगी को अपने मुताबिक जी लेता। देख आकाश ये बात पूरब भैया को नहीं पता चलेगी हम लोग इसका बिलकुल भी जिक्र नहीं करेंगे कि तुमने हमारे साथ शराब पी, नेहा ने आकाश को समझाने की कोशिश की पर आकाश को कोई फर्क नहीं पड़ा।

कोई बदलाव नहीं। कॉलेज के पहले दिन से आखिरी दिन तक बिलकुल वैसा ही। जब भी उसे कोई बात अच्छी नहीं लगती उसके "पूरब भैया" बीच में आ जाते और सारा मजा किरकिरा हो जाता। हमने कई बार कोशिश की पूरब भैया से मिलने की पर आकाश कोई न कोई बहाना बना देता। पर आज कॉलेज के आखिरी दिन हम सभी दोस्तों ने मानो ठान रखा था या तो आकाश आज हमारे साथ पिएगा या फिर हमें अपने पूरब भैया से मिलवाएगा। देख यार आकाश क्या तू हमारे लिए इतना भी नहीं कर सकता और आखिर परेशानी क्या है पीने से, जहर थोड़ी पिला रहे हैं तुझे... कितने अरमानो से हमने ये फेयरवेल पार्टी रखी है कि सभी एक साथ मिल कर गम-गलत करेंगे और खूब पियेंगे, पर तूने तो सारे अरमानों पर पानी फेर दिया, मेरी मान एक बार ट्राइ कर यार, सुहेल ने मनाने की कोशिश की पर आकाश ने फिर झटक दिया, बोला न मुझे नहीं पीना है...एक बात को कितनी बार कहूँ। क्यों नहीं पिएगा आज तो तुझे पिला के ही रहेंगे ... हिमांशु ने जबर्दस्ती पिलाने की कोशिश की। मुझे नहीं पीना .... क्यों नहीं समझते तुम सब पूरब भैया को पता चल गया तो बहुत नाराज़ होंगे। हटो तुम सब आकाश ने गुस्से में ग्लास को पटक दिया। पूरब भैया ...पूरब भैया ..... बुला अपने पूरब भैया को आज सीधे उन्हीं से पूछती हूँ आखिर एक दिन पीने से कौन सा पहाड़ टूट जाएगा ...नेहा ने अपनी तीखी आवाज में प्रतिक्रिया दी और बाकी सबने ने भी हाँ मे हाँ मिलाई .... हाँ आज हम लोग पूरब भैया से मिलेंगे और उनसे पूछेंगे। कोई जरूरत नहीं पूरब भैया से मिलने की। वो तुम लोगों से नहीं मिलेंगे, आकाश लड़खड़ाते शब्दों मे बोला और उठकर कमरे से बाहर चला गया। हम सबको समझ में नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है क्यों वह अपने पूरब भैया से इतना डरता है और हमें उनसे मिलवाना भी नहीं चाहता। आखिर हम सबके भी बड़े भाई बहन हैं, हम तो कभी नहीं डरे। पर इससे पहले हम कुछ समझ पाते आकाश जा चुका था।

कई दिन गुज़र गए आकाश से फिर मुलाक़ात नहीं हुई। सब अपनी-अपनी ज़िंदगियों मे व्यस्त हो गए। एक दिन आकाश के घर के बाहर से गुज़र रहा था तो मन किया कि चलो आज मिल ही लेते हैं। बिना दस्तक दिए चुप-चाप घर मे घुस गया । बाहर कमरे मे कोई नहीं था। आकाश के माता-पिता भी शायद कहीं बाहर गए हुए थे वरना मैं ज़रूर पकड़ा जाता क्योंकि आंटी हमेशा जान जाती थीं कि दरवाजे पर कोई आया है। मैं चुपचाप आकाश के कमरे की ओर बढ़ा, आकाश की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी .... लगा पूरब भैया से बात कर रहा था... आज तो पूरब भैया से मिल के ही रहूँगा। मैं उत्सुकता से पागल हुआ जा रहा था। दबे पाँव जब कमरे में प्रवेश किया तो स्तंभित अवाक रह गया, कुछ समझ में नहीं आया, वहाँ कोई नही था केवल आकाश था और आईने में खुद को निहारता आकाश खुद से ही संवाद कर रहा था। इससे पहले कि मैं कुछ बोलता आकाश बोल पड़ा .... आओ मित्र तुम्हारा स्वागत है, आखिर आज पूरब भैया से मिल ही लिए न। मुझे अभी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। कहाँ हैं पूरब भैया जिनसे तुम अभी बात कर रहे थ, मैंने आश्चर्य भरी नज़रों से आकाश से पूछा। अभी भी नहीं समझे दोस्त, मैं ही आकाश हूँ और मैं ही आकाश का पूरब हूँ। मेरे कोई बड़े भैया नहीं हैं, जो बातें मुझे पसंद नहीं हैं, जिनमे मेरा विश्वास नहीं है और जिसकी इजाज़त मेरा दिल नहीं देता है अगर मैं सीधे तुम लोगों से कहता था तो तुम लोग मेरा मज़ाक उड़ाते थे इसीलिए मैंने जान बूझकर पूरब का सहारा लिया ताकि तुम लोग मुझे, मुझसे दूर न कर सको। जानता हूँ तुम यही सोच रहे होगे कि मैं कितना कमज़ोर हूँ । हाँ मैं कमज़ोर हूँ और कमज़ोर कहलाना स्वीकार भी कर सकता हूँ पर स्वयं के विरुद्ध जाना कभी नहीं। बहुत सरलता से आकाश ने मानों सारी पहेलियाँ सुलझा दी पर मैं उलझ गया जीवन के कुछ नए प्रश्नो में।

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