महत्वाकांक्षा  सलिल सरोज

महत्वाकांक्षा

महत्वाकांक्षा अगर जीवन को सुखी बनाने हेतु की जाए तो अच्छी है और अगर उसे दूसरों से आगे बढ़ने का जरिया बना लिया जाए तो परिणाम बहुत ही भयानक सिद्ध होता है।

"प्यार की मजार पे चढ़ाए गए फूल भी फूल ही होते हैं, जो बीतते वक़्त के साथ मुरझाने लगते हैं। जो फूल कभी अपनी खुशबू के लिए प्रेयसी के बालों में झूमा करते हैं, वो दिन बदलते ही किसी चौराहे पे अपरिचित की तरह दुत्कार दिए जाते हैं।"

दिव्या और संभव ने अपने प्यार की शुरुआत खुशनुमा मौसम में खिले फूल की तरह की थी जिसकी महक में दोनों ने अपने ग़म भुला कर एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत की थी। दिव्या और संभव एक ही एमएनसी में साथ-साथ एक ही शिफ्ट में काम करते थे। एक ही डेस्क जॉब होने के कारण दोनों में नज़दीकियाँ बढ़ीं और दोनों परिणय सूत्र में बँध गए। "शादी से पहले किए गए वायदे सावन की बौछारों की तरह होते हैं, जब तक गिरते रहते हैं राहत देते हैं और रुक जाने पर ऊमस बढ़ाकर बेचैन कर देते हैं।" शादी से पहले संभव ने दिव्या के साथ घर के हर काम करने की कसमें खाई थीं और हर कदम पर उसका साथ देने की जिम्मेदारी भी उठाई थी। वहीं दिव्या ने संभव को एक गृहस्थ जीवन की हर खुशी देने और एक बेहतरीन जीवन साथी बनने की कसमें खाईं थीं।

महत्वाकांक्षा अगर जीवन को सुखी बनाने हेतु की जाए तो अच्छी है और अगर उसे दूसरों से आगे बढ़ने का ज़रिया बना लिया जाए तो परिणाम बहुत ही भयानक सिद्ध होता है। दिव्या और संभव दोनों जवानी की दहलीज पर अपने लिए सब हासिल करना चाहते थे। अच्छा घर, अच्छी सैलेरी, अच्छा खान-पान, अच्छी गाड़ी और वो सभी भौतिक सुविधाएँ जो उन्हें अपने दोस्तों से आगे खड़ा कर सकें।

"रेस में दौड़ने वाले को पता होता है कि जीत में क्या मिलेगा लेकिन अक्सर ये पता नहीं होता कि जीत कर भी क्या हार जाएँगे। रेस जीतने वाले कई बार रिश्तों की मिठास भूल जाते हैं, दिखावा इस कदर हावी हो जाता है कि खुद को पहचानने के लिए आइने की आवश्यकता महसूस होती है।"

दिव्या और संभव को 2 साल के लिए विदेश में इंटर्नशिप के लिए अलग-अलग देशों में भेजा गया। दूर से रिश्ते निभाना उतना ही कठिन है जितना कि पास होकर रिश्ते ना निभाना। पहले दोनों फोन पे, इंटरनेट पे बातें किया करते थे। मिलते भी थे 15-20 दिनों में, पर काम बढ़ता गया और दूरियाँ भी। विदेश की चकाचौंध, खुला जीवन और अनियंत्रित जीवन शैली ने दोनों की ज़िन्दगियों पर प्रतिकूल असर डाला। संभव ने सिगरेट और शराब पीना शुरू कर दिया। रात को देर तक जागना और पैसों की बेवजह खपत से उसका सारी बैंक बैलेंस खत्म होता जा रहा था। वहीं दिव्या अकेलेपन की ज़िन्दगी से ऊब कर नए दोस्त तलाश करने लगी। संभव का फोन उठाना बंद कर दिया, झूठ बोलना शुरू कर दिया।

महत्वाकांक्षा ने दोनों को पारीवारिक सुखों से वंचित कर दिया था। दोनों की शादी को 4 साल होने को थे, दिव्या का शरीर काम से थक चुका था, मन कहीं न कहीं मरता जा रहा था। संभव का जिस्म शराब की लत में पड़कर गल चुका था। जिन बच्चों को देख कर संभव का चेहरा खिल उठता था, अब अपनी असमर्थता को देख कर, अपने बच्चे नहीं कर पाने की कोफ़्त से जल उठता था।

आज दिव्या और संभव अपने दोस्तों के बीच भौतिक सुख में काफी आगे खड़े थे लेकिन मात्र 30 साल की उम्र में उनके चेहरे का रंग और शरीर का ढाँचा खत्म हो चुका था।

"शहरी जीवन अगर संतुलित न हो, तो वो आयु आधी ज़रूर कर देता है"। इंटर्नशिप खत्म करके जब दोनों वापस आए तो दोनों की आँखों में बस एक ही सवाल था - "हमारा प्यार, हमारी महत्वाकांक्षा के आगे इतना छोटा कैसे पड़ गया। हम एक दूसरे को क्यों नहीं समझ पाए। एक दूसरे को क्यों नहीं बाँध पाए।" और दोनों के दिमाग में बस यही उत्तर घूमता रहा - "काश हमने सिर्फ प्यार को जिया होता, महत्वाकांक्षा को नहीं।"

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